नवादा : जिला स्थित वारिसलीगंज विधानसभा क्षेत्र में तीन प्रखंड है, वारिसलीगंज, काशीचक और पकरीबरावां। यहां 20 वर्षों से राजनीति लगभग इन्हीं दोनों बाहुबलियों के ईदगिर्द घूम रही है. यहां की जातिगत गोलबंदी इतनी मजबूत है कि इसको तोड़ पाना किसी के बूते की बात नहीं। यहां सभी समीकरण फेल हो जाते हैं। इसकी जमीनी हालात को समझने के लिए वारिसलीगंज बाजार के थाना चौक पर चाय की दुकान में बैठे रामबालक यादव, चंद्रमौली शर्मा, रंजीत कुमार समेत अन्य का मत बिल्कुल साफ है। यहां किसी में कोई उलझन नहीं है। जाति के हिसाब से समर्थन तय है।
वारिसलीगंज विधानसभा की लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा
वारिसलीगंज विधानसभा क्षेत्र में दीपक से मुलाकात हुई। वे बाजार में रहते हैं और व्यवसाय करते हैं। इनका कहना है कि हमलोग क्या करें? दोनों ओर से बाहुबली ही हैं। लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा का हो गया है। इस हिसाब से ही लोग गोलबंद हो रहे हैं। वारिसलीगंज से आगे बढ़ने पर पकरीबारंवा रोड है। वहां के हालात अलग हैं। मेरी मुलाकात राजीव कुमार से होती है। चुनाव में क्या चल रहा है के सवाल पर उन्होंने कहा कि यहां इधर-उधर नहीं, आमने-सामने की लड़ाई है। हम पकरीबारंवा बाजार जाने के लिए आगे बढ़ते हैं। दो-तीन बड़े गांवों में गया, तो पता चला कि जाति के हिसाब से उम्मीदवार को समर्थन देने का मन लोगों ने बनाया है।
जातीय समीकरण से समझिए चुनाव का गणित
काशीचक बाजार की फिजा अलग थी। यहां भी अमूमन वही स्थिति दिखी जोअन्य जगहों पर थी। वहां से आगे बढ़ने पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े सतीश कुमार उर्फ मंटन सिंह के गांव महरथ पहुंचे। वहां मंटन सिंह के उम्मीदवार नहीं बनने का मलाल था। यह भूमिहारों का गांव है। यहां के वोटर चुप्पी साधे हैं। इसका संकेत साफ है कि वे महागबंधन का साथ नहीं देंगे। वहां से पार्वती होते हुए अखिलेश सिंह यानी भाजपा उम्मीदवार अरुणा देवी के गांव अपसढ़ पहुंचते हैं। वहां के ग्रामीणों के दावे ही कुछ अलग है। जातीय समीकरण से चुनाव का गणित समझ सकते है। यह भूमिहार बहुल इलाका है। यहां का चुनाव परिणाम भूमिहार वोट से बनता-बिगड़ता है।
महागबंधन यादव, कोईरी, कुर्मी और मुसलमान को मान रही कोर वोटर
स्थानीय लोगों के अनुसार, यहां भूमिहार वोटर एक लाख के करीब हैं। वहीं, लगभग 50 हजार यादव व कोईरी कुर्मी के 40 हजार और मुसलमानों के 21 हजार वोट हैं। महागबंधन यादव, कोईर, कुर्मी व मुसलमान को कोर वोट मानती है, वहीं एनडीए पासवान व मांझी वोट पर नजर रखे हुए है। इनका तर्क है कि चिराग व जीतनराम के कारण इनमें बिखराव संभव नहीं है। दोनों का कुल वोट करीब 30 हजार है। हालांकि, वैश्य व अन्य पिछड़ी जातियों का वोट भी लगभग 40 से 50 हजार के बीच है, जो किसी उम्मीदवार के जीत को हार व हार हो जीत में बदलने की क्षमता रखते हैं। चुनाव परिणाम उसकी पक्ष में जायेगा, जो जितना अधिक जातीय गोलबंदी को करने में सफल होगा।
भईया जी की रिपोर्ट