नवादा : जिले में 2020 के विधानसभा चुनावों में इनमें से कोई नहीं अर्थात नोटा के विकल्प ने एक महत्वपूर्ण और निर्णायक शक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 2025 का लोकसभा चुनाव भी कुछ ऐसा ही साबित हुआ था। विधानसभा व लोकसभा चुनावों में नोटा को मिले वोटों की संख्या ने न केवल कई छोटे उम्मीदवारों को पीछे छोड़ दिया, बल्कि जिले की अधिकांश सीटों पर सिर्फ आमने-सामने वाले प्रमुख दलों के उम्मीदवारों को छोड़ कई बड़े और स्थापित उम्मीदवारों पर भी नोटा भारी पड़ा, जो मतदाताओं की मौजूदा राजनीतिक विकल्पों के प्रति गहरी निराशा को दर्शाता है।
आधिकारिक आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि हजारों मतदाताओं ने अपनी असंतुष्टि व्यक्त करने के लिए नोटा का बटन दबाया, जिससे कई प्रत्याशियों का जनाधार नोटा के सामने फीका पड़ गया। नवादा विधानसभा सीट के आंकड़ों से स्पष्ट है कि नोटा को मिला वोट प्रतिशत साधारण नहीं था, बल्कि यह कई प्रत्याशियों के वोट शेयर से अधिक था। 2020 के चुनाव में नवादा सीट पर नोटा ने कई दलों को हराया था।
नवादा विधानसभा सीट पर नोटा को 2930 वोट मिले, जो 1.62 प्रतिशत रहा। इस सीट पर कुल 15 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। इस सीट पर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के धीरेन्द्र कुमार को महज 1.22 प्रतिशत वोट ही मिल सके, जबकि हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा यूनाइटेड के राजेश कुमार निराला को महज 0.26 प्रतिशत वोट से संतोष करना पड़ा था। इनके अलावा पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया डेमोक्रेटिक के सतीश कुमार को सिर्फ 0.18 प्रतिशत वोट ही मिल सका था। इन पार्टियों के उम्मीदवारों के अलावा कई निर्दलीय प्रत्याशी नोटा से काफी पीछे रहे। 15 प्रत्याशियों में नोटा 07वें नंबर पर था, जबकि 08 प्रत्याशी इसके बाद थे। 2015 में विजेता-उपविजेता के अलावा सभी रहे नोटा से पीछे :- 2015 का विधानसभा चुनाव तो और भी रोचक था। देखा जाए तो नोटा लागू होने के बाद बिहार राज्य में पहला विधानसभा चुनाव था।
नवादा विधानसभा की स्थिति यह रही कि राजद उम्मीदवार राजबल्लभ प्रसाद ने 50.12 प्रतिशत वोट पा कर जीत दर्ज की, जबकि राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के इन्द्रदेव प्रसाद को 40.62 प्रतिशत वोट प्राप्त कर शिकस्त खानी पड़ी। इनके बाद सीधे यानी तीसरे स्थान पर नोटा रहा था, जिस पर 7418 यानी 4.21 प्रतिशत वोट पड़े थे। 2015 में शिवसेना के रणजीत कुमार को 0.85 प्रतिशत वोट, बहुजन समाज पार्टी के राम जतन यादव को 0.82 प्रतिशत वोट और सीपीआईएमएम की सावित्री देवी को 0.42 प्रतिशत वोट से ही संतोष करना पड़ा था। इस बार कुल 12 प्रत्याशियों ने भाग्य आजमाया था।
नोटा की बढ़ती ताकत का संदेश, मतदाताओं की गहरी निराशा:- नवादा विधानसभा चुनावों में नोटा को मिला यह मजबूत समर्थन केवल एक चुनावी विकल्प नहीं, बल्कि मतदाताओं की गहरी निराशा का प्रतीक है। विकल्पों की कमी भी यह आंकड़ा स्पष्ट करता है। मतदाता उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि, विकास के प्रति उनकी उदासीनता या उनके प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं रहने पर उनसे बेहतर विकल्प नहीं पा कर नोटा का बटन दबाया था।
नोटा ने मतदाताओं को बिना किसी पार्टी को वोट दिए, चुनावी प्रक्रिया में अपनी असंतुष्टि दर्ज कराने का एक प्रभावी हथियार दिया है। यह एक मूक विरोध साबित हो रहा है, जो सीधे राजनीतिक दलों के टिकट वितरण पर सवाल उठाता है। स्पष्ट है कि जब नोटा का वोट कई प्रत्याशियों से अधिक हो जाता है, तो यह दर्शाता है कि इन प्रत्याशियों को मतदाताओं ने सिरे से खारिज कर दिया। आने वाले चुनावों में राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि यदि वे विश्वसनीय और साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवार नहीं उतारते हैं, तो नोटा की यह ताकत कई सीटों पर हार-जीत के अंतर को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
भईया जी की रिपोर्ट