गौरव कुमार
भारत और पाकिस्तान, दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के दो सबसे महत्वपूर्ण ध्रुव है। ये दोनों 1947 में विभाजन के बाद से ही एक जटिल, विरोधाभासी और तनावपूर्ण रिश्ते में बंधे रहे हैं। इस रिश्ते की पहचान ऐतिहासिक विवादों, खासकर जम्मू और कश्मीर पर गतिरोध, और पाकिस्तान की धरती से प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद के कारण आई गहरे अविश्वास से होती है। हालांकि, इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश करते हुए, ‘नए भारत’ ने अपनी पाकिस्तान नीति में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक बदलाव लाया है।
मोदी युग में भारत ने “पहले प्रतिक्रिया, फिर निर्णय” की परंपरा को तोड़ते हुए “पहले निर्णय, फिर कार्रवाई” का नया सूत्र स्थापित किया है। अब भारत आतंकवाद के हर रूप पर सिर्फ “नींदा” नहीं करता, बल्कि “प्रत्युत्तर” देता है। चाहे सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयर स्ट्राइक, भारत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि “नई दिल्ली अब चुप नहीं बैठेगी।” प्रधानमंत्री मोदी की नीति ने पाकिस्तान को यह समझा दिया है कि बातचीत अब आतंक और विश्वासघात के साए में नहीं हो सकती। कूटनीति, सुरक्षा और वैश्विक मंचों पर भारत की दृढ़ता ने दुनिया को भी यह दिखा दिया कि नया भारत न तो दबाव में झुकता है और न ही सीमाओं की रक्षा में समझौता करता है।
दरअसल भारत ने दशकों तक, अपनी नीति को ‘रणनीतिक संयम’ पर आधारित रखा। इसका उद्देश्य परमाणु युद्ध के खतरे के बीच सैन्य टकराव से बचना और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करना था। हालांकि, 2008 के मुंबई हमलों के बाद से यह सोच बदलने लगी। उरी (2016) और पुलवामा (2019) जैसे बड़े आतंकी हमलों ने नई दिल्ली को यह मानने पर मजबूर कर दिया कि केवल कूटनीतिक विरोध और संयम पाकिस्तान के छद्म युद्ध (Proxy War) को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ‘नया भारत’ अब एक ‘नए सामान्य’ (New Normal) की ओर बढ़ गया है, जहाँ आतंकवाद के खिलाफ दंडात्मक सैन्य कार्रवाई को एक राजनीतिक-सैन्य विकल्प के रूप में शामिल किया गया है। यह वह धुरी है जिस पर ‘नए भारत’ की पाकिस्तान नीति टिकी है, जिसके तीन प्रमुख स्तंभ हैं:
आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहिष्णुता
मोदी युग में भारत की नीति का सबसे मूलभूत सिद्धांत आतंकवाद के खिलाफ ‘शून्य सहिष्णुता’ है। इसका सीधा संदेश है- आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। भारत ने स्पष्ट रूप से यह शर्त रखी है कि किसी भी सार्थक द्विपक्षीय बातचीत के लिए पाकिस्तान को अपनी धरती से पनप रहे आतंकवादी बुनियादी ढांचे पर ठोस, अपरिवर्तनीय और सत्यापन योग्य कार्रवाई करनी होगी।
इस दृढ़ता का सबसे मुखर प्रदर्शन बालाकोट एयर स्ट्राइक (2019) और भारत के ‘नए सैन्य सिद्धांत’ में निहित है। बालाकोट ने दशकों पुराने ‘रणनीतिक संयम’ को तोड़ते हुए दिखाया कि भारत सीमा पार जाकर भी आतंकवाद के ठिकानों को निशाना बनाने में संकोच नहीं करेगा। भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे कदम उठाकर यह संदेश दिया है कि पाकिस्तान द्वारा पारंपरिक या उप-पारंपरिक किसी भी तरह के उल्लंघन का जवाब अब सीमा के भीतर सैन्य या खुफिया साधनों से दिया जाएगा।
कूटनीतिक मोर्चे पर, भारत ने पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सफलतापूर्वक अलग-थलग किया है, जिससे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसे निकायों में उस पर दबाव बढ़ा है। इस दृढ़ता का एक अन्य आयाम यह भी है कि भारत ने जम्मू और कश्मीर से जुड़े अपने आंतरिक मामलों में किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है, जिसमें पाकिस्तान का कश्मीर पर निरंतर राजनीतिक और राजनयिक अभियान शामिल है।
शर्तों पर आधारित खुलापन
दृढ़ता की नीति का मतलब यह कतई नहीं है कि संवाद के दरवाजे स्थायी रूप से बंद कर दिए गए हैं। भारत एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में शांति और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन वह यथार्थवादी शर्तों पर आधारित संवाद की बात करता है। यह नीति ‘शर्तों के अधीन संवाद’ के सिद्धांत पर चलती है।
भारत और पकिस्तान ने 2021 में, दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों (DGsMO) द्वारा नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष विराम समझौते को बहाल करने पर सहमति व्यक्त की। यह कदम दोनों देशों के बीच तनाव कम करने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने की पारस्परिक इच्छा को दर्शाता है। हालाँकि, भारत ने इसे ‘शांति’ की शुरुआत नहीं, बल्कि तनाव कम करने की दिशा में एक ‘व्यावहारिक कदम’ माना है।
भारत और पाकिस्तान शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और सार्क (SAARC) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग करते रहे हैं, जो उन्हें द्विपक्षीय तनाव से परे अनौपचारिक बातचीत और क्षेत्रीय मुद्दों पर सहयोग के लिए एक तटस्थ मंच प्रदान करता है। भारत का स्पष्ट रुख यह है कि जब भी पाकिस्तान आतंकवाद के समर्थन को पूरी तरह से त्याग देगा और विश्वास बहाली के ठोस कदम उठाएगा, भारत हमेशा बातचीत के लिए तैयार रहेगा, लेकिन बातचीत राष्ट्रीय हितों और संप्रभुता की कीमत पर नहीं होगी।
राष्ट्रीय हितों का अभेद्य कवच
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि रखना है। यह केवल सीमा सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि एक व्यापक सुरक्षा रणनीति है जो भू-रणनीतिक वास्तविकताओं पर आधारित है।
पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार और चीन के साथ उसके गहरे सैन्य गठबंधन (CPEC और अन्य रक्षा सहयोग) को देखते हुए, भारत अपनी पारंपरिक सैन्य क्षमताओं और खुफिया तंत्र के आधुनिकीकरण में तेजी ला रहा है। यह एक निवारक क्षमता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देने और आंतरिक सुरक्षा को अस्थिर करने के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए, भारत ने अपनी सीमा सुरक्षा (बीएसएफ, सेना) और आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित किया है।
भारत अपनी सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए वैश्विक साझेदारों, विशेषकर खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्यों और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी मजबूत कर रहा है, ताकि सऊदी-पाकिस्तान धुरी के किसी भी भू-राजनीतिक प्रभाव का संतुलन बनाया जा सके।
इसका यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मोदी युग में ‘नए भारत’ की पाकिस्तान नीति एक यथार्थवादी और दूरदर्शी रणनीति है, जो अतीत के भावनात्मक दृष्टिकोण से परे है। यह नीति इस कटु सत्य को स्वीकार करती है कि एक अस्थिर, परमाणु हथियारों से लैस और आतंकवाद प्रायोजित करने वाला पड़ोसी भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यह नीति सफलतापूर्वक दृढ़ता, संवाद और सुरक्षा के बीच एक नाजुक संतुलन स्थापित करती है। दृढ़ता आतंकवाद को अस्वीकार करती है, संवाद शर्तों पर आधारित शांति की गुंजाइश छोड़ता है और सुरक्षा राष्ट्रीय हितों को अभेद्य कवच प्रदान करती है। यह दृष्टिकोण केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए एक नया और मजबूत आधार प्रदान करता है, जहां पाकिस्तान को भी अंततः यह चुनना होगा कि वह आतंक और अस्थिरता का केंद्र बनना चाहता है या क्षेत्रीय विकास और शांति का भागीदार।