नवादा : जिले में अब तक 08 निर्दलीय विधायकों ने दलीय उम्मीदवारों पर भारी पड़ते हुए अपना परचम लहराया है। कुल 18 चुनावों में इनकी धाक रही है। बिहार की राजनीति में दलों की जड़ें गहराई तक फैली हुई हैं, लेकिन नवादा जिला एक ऐसा उदाहरण है, जहां जनता ने कई बार पारम्परिक राजनीतिक दलों को चुनौती देते हुए निर्दलीय उम्मीदवारों को विधानसभा तक पहुंचाया है। अब तक कुल आठ बार स्वतंत्र उम्मीदवारों ने नवादा जिले की अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से जीतकर यह साबित किया है कि नेता और जनता का गठबंधन हो जाए, तो बिना किसी दल के समर्थन के भी जनप्रतिनिधि चुना जा सकता है।
शुरुआती दौर में जब राजनीतिक पार्टियों का दायरा सीमित था, तब स्थानीय प्रतिष्ठा और जनता के बीच संबंध ही सफलता की कुंजी हुआ करता था। लेकिन इसका प्रदर्शन आगे भी कई चुनावों में देखने को मिला। बिहार-झारखंड सीमा पर नवादा जिला अपनी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता रहा है। यहां की राजनीति हमेशा से स्थानीय मुद्दों और जनसरोकारों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यही कारण है कि जिले की जनता कई बार बड़े-बड़े दलों के प्रत्याशियों को नकारकर निर्दलीयों को जिताने में पीछे नहीं रही।
स्वतंत्र उम्मीदवारों का इतिहास जिले में काफी पुरानी रही है। स्वतंत्र रूप से चुनाव जीतने वाले पहले उम्मीदवारों में रजौली क्षेत्र का दखल सबसे पहला है, जहां से सबसे पहले 1977 में स्व.बाबू लाल ने निर्दलीय जीत हासिल की थी। हालांकि बाद में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। इसके बाद हिसुआ क्षेत्र का नाम प्रमुख रहा है, जहां से आदित्य सिंह ने तीन बार 1980, 1985 और 2000 में निर्दलीय जीत हासिल कर कई दिग्गजों को अपना लोहा मनवाया था। वे पूर्व से कांग्रेसी रहे थे, लेकिन पार्टी से मतभेदों के कारण निर्दलीय चुनावी मैदान में कूद कर अपनी धाक जमाते रहे।
आगे भी जारी रहा सिलसिला, कायम रही निर्दलीय की धमक:- 1977 में शुरुआत के बाद जो सिलसिला पूर्व मंत्री आदित्य सिंह ने आगे बढ़ाया तो अन्य कई ने भी खुद को निर्दलीय आजमाया और जीत हासिल कर खुद को साबित कर दिया। रजौली सीट पर 1985 में बनवारी राम ने निर्दलीय जीत हासिल की थी। इसके पूर्व वे कांग्रेसी थे। 1995 में नवादा सीट से राजबल्ल्भ प्रसाद ने स्वतंत्र रूप से चुनाव में भागीदारी निभाई और छाता चुनाव चिन्ह पर जीत हासिल की। बाद में वे राजद के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत दर्ज कर श्रम राज्य मंत्री बने।
2000 में वारिसलीगंज सीट से अरुणा देवी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की, जबकि बाद के चुनाव में उन्होंने लोजपा से खुद को आजमाया। वारिसलीगंज से 2005 के अक्टूबर में हुए उपचुनाव में प्रदीप कुमार ने निर्दलीय जीत हासिल की। बाद के चुनावों में उन्होंने खुद को जदयू के टिकट पर आजमाया। 2005 का साल निर्दलीयों के लिए काफी लाभदायक साबित हुआ था। इस वर्ष के मुख्य और उपचुनाव में क्रमश: फरवरी और अक्टूबर में दो बार कौशल यादव ने गोविंदपुर सीट जबकि उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव ने नवादा सीट से स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। अब तक निर्दलीय जीते विधायक : – वर्ष विधायक विधानसभा क्षेत्र 1977 बाबू लाल रजौली
1980 आदित्य सिंह हिसुआ
1985 आदित्य सिंह हिसुआ व बनवारी राम रजौली
1995 राजबल्लभ प्रसाद नवादा
2000 आदित्य सिंह हिसुआ व अरुणा देवी वारिसलीगंज 2005 फरवरी कौशल यादव गोविंदपुर
2005 अक्टूबर कौशल यादव गोविंदपुर
2005 फरवरी पूर्णिमा यादव नवादा 2005 अक्टूबर पूर्णिमा यादव नवादा 2005 अक्टूबर प्रदीप कुमार वारिसलीगंज
अब तक 83 विधायकों के सिर पर सजा है ताज, दलीय बने 71
जिले के सभी पांच विधासभा क्षेत्रों में हुए चुनाव में अबतक कुल 83 विधायकों के सिर पर ताज सजा है। इनमें से 12 चुनावों में कुल आठ निर्दलीय चेहरों ने अपनी धाक जमाई थी। इस प्रकार, अबतक विभिन्न दलों के टिकट पर कुल 71 विधायकों ने जीत का स्वाद चखा। नवादा सीट से अब तक 19, हिसुआ से 16, गोविंदपुर से 14 जबकि रजौली और वारिसलीगंज से 17-17 बार विधायकों को आम मतदाताओं ने विधानसभा भेजा।
उल्लेखनीय है कि इनमें से नवादा सीट पर 1952 में दो विधायक चुने गए थे, जबकि वारिसलीगंज सीट पर 1957 में नियमानुसार दो विधायक चुने गए थे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि रजौली विधानसभा क्षेत्र से फरवरी 2025 में जीते राजद के विधायक नंद किशोर चौधरी ने विधानसभा का मुंह तक नहीं देख पाया था क्योंकि शपथ लेने के पूर्व ही विधानसभा भंग हो गयी थी। अक्टूबर 2025 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा । ऐसे में विधानसभा के सदन तक वे पहुंच ही नहीं पाए और भूतपूर्व विधायक हो गये।
भईया जी की रिपोर्ट