छपरा: परमतीर्थ चिरांद के प्राचीन अयोध्या मंदिर में कार्तिक मास में कल्पवास अनुष्ठान कर रहे परम तपस्वी श्रीश्री 1008 मौनी बाबा ने गुरुवार को चित्रगुप्त जयंती और भैया दूज की शुभकामना देते हुए भक्तों के समक्ष श्रीराम के आविर्भाव के पूर्व की कथा सुनायी। स्वामीजी ने कहा कि वेद-पुराण, रामायण सभी ग्रंथों का मत है कि श्रीराम महाविष्णु हैं। इनके अवतार के लिए प्रकृति को अनुकूल बनाने वाली विद्या जिस तपोभूमि पर प्रकट हुई थी वह आज का चिरांद है। कालचक्र के प्रभाव से इस परम तीर्थ गौरव लुप्त और जागरित होते रहा है। यही कारण है कि इस तपोभूमि के गर्भ से हजारों वर्षों के गौरवषाली इतिहास के प्रमाण मिलते रहे हैं। यहां आदि काल से तपोनिष्ठ ऋषियांे के ज्ञान साधना की परम्परा रही है। इसीलिए इस तीर्थ के अणु-परमाणु दिव्यात्माओं को सहज आकर्षित करती रही है। कलिकाल में भी इस स्थल पर महानतपस्वी आते रहे हैं और उनके तप से इस तीर्थ की कीर्ति पताका फहराती रही है। ऐसे गुप्त तीर्थ जन समूह को सहज ही आकर्षित करते हैं क्योंकि वहां वे अपने पूर्वजों की कीर्ति देख रोमांच व हर्ष का अनुभव करते हैं। ऐसे स्थान फिर से उठ खड़े होने व इतिहास रचने की प्रेरणा देते हैं।
गंगा के तट के उत्तर दिषा में स्थापित यह तप क्षेत्र वास्तव में वैदिक ऋषि विभांड की तपोभूमि है। विभांड ऋषि महातेजस्वी ऋषि कष्यप के पुत्र थे। उनकी चेतना जब उर्द्धव हुई तब कल्प विद्या उनके अधीन हो गयी थी। बाद में वह विद्या उनके पुत्र ऋषि श्रृंगी के अधीन हो गयी थी। उसी कल्प विद्या का प्रयोग करने के लिए उन्होंने यज्ञ कराया था जिससे दिव्य हवि प्राप्त हुए थे। उसी हवि से श्रीराम को दिव्य शरीर मिला था। महर्षि बाल्मीकि ने राम कथा के प्रसंग में उनके आविर्भाव की कथा सुनायी है। जिसमें साकेत के उत्तराधिकारी के लिए चितित चक्रवर्ती सम्राट महाराज दषरथ को उनके त्रिकालदर्षी महामंत्री सुमंत ने ऋषि श्रृंगी की कथा सुनायी थी। इस प्रकार चिरांद वह स्थान है जहां धर्म का मूल है। धर्म का मूल होने के कारण इस स्थान पर दानवीर राजाओं की परम्परा प्राचीन काल से रही है। भारत के सौभाग्य के उदय के लिए इस परमतीर्थ का गौरव पुनर्स्थापित करना होगा। यह श्रीराम की आराधना और भारत की अध्यात्मविद्या से संभव होगा। इस तीर्थ का गौरव पुनर्स्थापित हो, इस संकल्प को लेकर पवित्र कार्तिक मास में राम नाम जप यज्ञ का अनुष्ठान किया गया है। इससे लोगों की चेतना जागरित होगी और इस तीर्थ का कायाकल्प होगा।
गंगा-सरयू व सोन के संगम पर स्थित पुरातात्विक व ऐतिहासिक स्थल चिरांद भी एक ऐसा ही परम तीर्थ है जो धीरे-धीरे जागृत हो रहा है। यह विष्व के दुर्लभ पुरातात्विक स्थलों में से एक है जिसने इतिहास की स्थापित मान्यताओं को बदला है क्योंकि यह श्रीराम के आविर्भाव से सम्बंधित है।