Patna : बिहार में भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की सरकार की नीति पर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ जहाँ कुछ मामलों में त्वरित कार्रवाई की जाती है, वहीं कई अन्य मामलों में जाँच और विभागीय कार्रवाई को सालों तक लटकाया जाता है, जिससे आरोपी सरकारी अधिकारी बिना किसी रोक-टोक के अपनी नौकरी जारी रखते हैं। हाल ही में, बिहार सरकार के द्वारा निबंधन विभाग के सहायक महानिरीक्षक (AIG) प्रशांत कुमार को आय से अधिक संपत्ति मामले में बर्खास्त कर दिया गया है।
पंजीयन विभाग के सहायक महानिरीक्षक (AIG) प्रशांत कुमार पर आय से 2 करोड़ 6 हजार रुपये अधिक की संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। आय से अधिक की अज्ञात संपत्ति मिलने पर विशेष निगरानी इकाई ने 9 नवंबर 2022 को भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत प्रशांत कुमार पर मामला दर्ज कर के कार्रवाई की है। प्रशांत कुमार के पटना, मुजफ्फरपुर और सिवान स्थित ठिकानों पर तलाशी के दौरान, विशेष निगरानी इकाई को उनकी पत्नी और बेटे के नाम पर 1.86 करोड़ रुपये के प्लॉट, विभिन्न बैंकों में 80 लाख रुपये, एनएससी में 20 लाख रुपये, और 36 लाख रुपये के गहने मिले। इसके अलावा, उनके पटना स्थित घर से 2 लाख 40 हजार रुपये नकद और 30 लाख रुपये के गहने भी बरामद हुए थे।
कार्रवाई में असमानता
भ्रष्टाचार के इस मामले में सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए लगभग तीन साल के भीतर प्रशांत कुमार को बर्खास्त कर दिया। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई अन्य विभागों, जैसे कि पंजीयन, परिवहन, शिक्षा और इंजीनियरिंग, में दर्जनों ऐसे मामले सालों से लंबित हैं। इन मामलों में आरोपी अधिकारी न केवल अपनी नौकरी कर रहे हैं, बल्कि उन्हें फील्ड पोस्टिंग भी मिल रही है। सरकार ने प्रशांत कुमार को बिहार सरकारी सेवक आचार नियमावली के उल्लंघन का दोषी मानते हुए बर्खास्त कर दिया और कहा कि वह भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन, इन मामलों में हो रही असमान और धीमी कार्रवाई सरकारी दावों पर प्रश्नचिह्न लगाती है।