नवादा : आत्मशुद्धि का दस दिवसीय महापर्व पर्युषण के आठवें दिन जैन धर्मावलंबियों ने गुरूवार को दशलक्षण धर्म के सप्तम स्वरूप उत्तम त्याग धर्म की विशेष आराधना की। इस अवसर पर जैनियों ने भगवान महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतम गणधर स्वामी की निर्वाण भूमि श्री गुणावां जी दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र पर जिनेंद्र प्रभु का पंचामृत अभिषेक व शांति धारा की। तत्पश्चात श्रद्धालुओं द्वारा भक्ति भाव के साथ क्रमशः जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप व फल सहित अष्टद्रव्य से देव शास्त्र गुरू व पंच परमेष्ठी भगवान के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की गयी।
दैनिक पूजन के उपरांत जैन धर्मावलंबियों ने दशलक्षण धर्म के साथ ही धर्म के अष्टम स्वरूप की विशेष आराधना करते हुये अपने अपने जीवन से विकृतियों को त्यागने का संकल्प लिया। जैन समाज के प्रतिनिधि दीपक जैन ने बताया कि इस धार्मिक अनुष्ठान के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा रत्नत्रय पूजन के प्रथम स्वरूप सम्यक दर्शन धर्म की भी विशेष आराधना की गयी। आयोजित आत्मशुद्धि के इस विशेष अनुष्ठान में लक्ष्मी जैन, अभिषेक जैन, सुलोचना जैन, आकाश जैन सहित जैन समाज के कई अन्य प्रतिनिधि शामिल हुये।
विकारों की तिलांजलि देना ही उत्तम त्याग : दीपक जैन
जैन समाज के प्रतिनिधि दीपक जैन ने उत्तम त्याग धर्म पर प्रकाश डालते हुये बताया कि जैन धर्म के संदर्भ में उत्तम त्याग धर्म का विशेष महत्व है। उन्होंने कहा कि उत्तम त्याग धर्म का अर्थ सांसारिक वस्तुओं के साथ ही आंतरिक आसक्तियों, मोह, माया व इच्छाओं का परित्याग करना है। त्याग में केवल भौतिक सुखों का त्याग ही नहीं, बल्कि राग-द्वेष व मोह-माया जैसे मानसिक विकारों व इच्छाओं की तिलांजलि भी शामिल है। दीपक जैन ने कहा कि जैन धर्म में त्याग को आत्मशुद्धि का मार्ग माना जाता है, जिससे व्यक्ति अपनी इच्छाओं को कम कर कर्म बंधनों को कमजोर करता है, जिससे व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक दृष्टि से सरल शब्दों में राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया व लोभ आदि जैसे विकारों का आत्मा से छूट जाना ही उत्तम त्याग है।
भईया जी की रिपोर्ट