पारस अस्पताल में कुख्यात चंदन मिश्रा की हत्या मामले को लेकर कई प्रकार की बातें हो रही हैं। कोई इसे गैंगवार का परिणाम बता रहा है तो कोई महज सुपारी किलर की करतूत। लेकिन, यह मामला इतना आसान नहीं है। एनआईए जैसी एजेंसियों से जिस प्रकार की सूचनाएं व डाटा पहुंच रही हैं, उससे पता चलता है कि बिहार अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों का डेन बन रहा है। इस घटना में शामिल अपराधियों ने पूरे होशोहवास में अपना चेहरा उजागर किया। इसके पीछे एक दूरगामी और अत्यंत खतरनाक संदेश छिपा है।
बिहार की राजधानी पटना में जिस गैंग ने धड़ल्ले से इस घटना को अंजाम दिया और उसका प्रदर्शन भी किया, उसका मकसद बिहार के लोगों को संदेश देना है। पूरे बिहार में आतंक के सिवान माडल का विस्तार इसका मकसद है। बिहार में एक नहीं बल्कि अनेक शहाबुद्दीन का निर्माण करने की प्रक्रिया तेजी स ेचल रही है। इसमें एनजीओ, व्यापार, राजनीति, प्रशासनिक सम्पर्क सबका उपयोग करने की पूरी योजना है।
केन्द्र सरकार के कड़े रूख के कारण पूरे देश से इस्लामिक आतंकी संगठनों का सफाया होना शुरू हो गया है। यूपी में उनके पैर उखड़ चुके हैं। ऐसे में बिहार और बंगाल में उन्हें अनुकूलता दिखायी पड़ रही है। बिहार की लीजलीज राजनीतिक व प्रशासनिक माहौल में ये अपनी धमक दिखाते हुए भय का माहौल बनाने के प्रयास में लग गए है। इसके दो उद्येश्य हो सकते हैं। पहला यह कि कानून व्यवस्था की खराब स्थिति के कारण बिहार के मतदाता एनडीए से खफा हो जाएं और विरोध में मतदान करें। दूसरा येह कि तेजी से भय का वातावरण बना दिया जाए जिसमें लोग अपने-अपने घरों में दुबकने और अपराधियों का खुलकर विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सके।
इस घटना के बाद पूर्णियां के सांसद पप्पू यादव तत्काल पारस अस्पताल पहुंच गए थे। हत्या कांड को अंजाम देने वालों ने पप्पू यादव को भी फोन पर धमकी दे दी। यह साधारण बात नहीं है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि हत्या करने वाले गिरोह के पीछे कोई मजबूत नेटवर्क खड़ा है। पारस अस्पताल में अतिविशिष्ट मरीज के सम्पर्क करने वालों को मिलने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। लेकिन, पांच की संख्या में ये अपराधी सीधे चंदन के कमरे तक कैसे पहुंच गए। सीसीटीवी कैमरा तो आन था लेकिन गोली चलने के बाद भी स्मोक संेेसर काम नहीं कर सका। उसका सायरन नहीं बजा। यह बड़े षड्यंत्र का एक मजबूत कड़ी है। अपराधियों ने सीसीटीवी कैमरे को डिस्टर्ब क्यों नहीं किया? तो इसका एक उत्तर है कि अपराधी अपनी ताकत का प्रदर्शन करना चाहते थे कि वे कुछ भी करने में समर्थ हैं। उनके मुंह पर कोई मास्क न होना भी उनकी रणनीति का एक हिस्सा ही है। यदि वे गिरफतार होते हैं और जेल भेजे जाते हैं तो वे जेल से ही अपना आतंक राज चलाते रहेंगे।
अबतक की जांच पड़ताल में इतना स्पष्ट हो गया है कि अस्पताल प्रशासन के एक रिजनल डायरेक्टर जो इस क्षेत्र के प्रमुख हैं उनसे अपराधियों का संबंध है। इसके कारण अस्पताल में हमेशा इनका न केवला आनाजाना रहा है बल्कि अस्पताल के कुछ प्रमुख कर्मचारियों के साथ अच्छे संबंध भी है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि हत्या करने वाले स्टाफ के लिए निश्चित रास्ते से उपर तक पहुंच गए थे।
अतिविशिष्ट सूत्रों के अनुसार बिहार में आतंकी संगठन एक ऐसा नेटवर्क बनाने के प्रयास में लगे हैं जो अपने खर्चे की व्यवस्था स्वयं करता रहे। पहले तो जाली नोट, ड्रग एवं ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे अवैध धंघे से अकूत पैसे की कमाई होता था। लेकिन, अब इस नेटवर्क में शामिल मजहबी मतांध युवाओं को अत्याधुनिक अस्त्र मुहैया करा कर उन्हें सुपारी शूटर या जमीन पर अवैध कब्जा करने वाला बनाया जा रहा है। प्रत्येक क्षेत्र में ऐसे युवा अपराधियों के गिरोह बनाने की योजना पर काम हो रहा है।
राजनीतिक क्षेत्र में भी इनका संपर्क हो ऐसी व्यवस्था बनायी जा रही है। इसके साथ ही लव जेहाद के लिए भी ऐसे खतरनाक अपराधी गिराहों के उपयोग की बातें भी सामने आयी हैं। फिलहाल पटना पुलिस मौन है। लेकिन, आने वाले इस भयंकर खतरे से निपटने के लिए तो योगी माडल ही कारगर सिद्ध हो सकता है। यह वोट के लिए किसी भी हद तक गिरने वाली सरकार की पुलिस के बुते की बात नहीं है।