बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के इस आदेश को चुनौती दी गई है। आयोग के खिलाफ ये याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स नामक संस्था ने दाखिल की है। इस याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का ये आदेश मनमाना है। इससे लाखों मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने की भी मांग की गई है।
याचिका में क्या कहा गया
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि अगर वोटर लिस्ट पुनरीक्षण का चुनाव आयोग का आदेश रद्द नहीं किया गया तो मनमाने ढंग से और उचित प्रक्रिया के बिना लाखों मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को चुनने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। इससे स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित हो सकती है जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं। SIR आदेश लोगों के समानता और जीने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। साथ ही ये जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 के प्रावधानों के खिलाफ है। लिहाजा इस आदेश को निरस्त किया जाना चाहिए।
बिहार में वोटर लिस्ट में इस विशेष पुनरीक्षण और फिर उसमें संशोधन को करने के लिए सख्त दस्तावेजी आवश्यकताओं, पर्याप्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की कमी और अनुचित रूप से कम समय-सीमा के कारण वास्तविक मतदाताओं के नाम गलत तरीके से मतदाता सूची से हटाए जाने की संभावना है। जिससे प्रभावी रूप से उनके मतदान के अधिकार को वंचित किया जा सकता है। इस आदेश को जारी करके, ECI ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी राज्य की जगह नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान दस्तावेजों को बाहर करके, यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों पर असंगत रूप से प्रभाव डालती है, जिससे उनके बाहर होने की संभावना अधिक होती है।