नवादा : मृगशिरा नक्षत्र छह दिन बीत गया। जिले में बिचड़े का आच्छादन शुरू भी नहीं हो सका। अभी तक नदियों में पानी नहीं आ पाया है, जिससे किसान धान के बिचड़े डालने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। सामान्यतः जिले में इस दरम्यान लेट वेरायटी धान के बिचड़े डाले जाते हैं, जो अंतत: नहीं डाले जा रहे हैं। इस किस्म के धान की अवधि लगभग 150 दिनों की होती हैं और यह बेहतर उत्पादकता देती है। जिले के कछ संपन्न किसान इसकी रोपाई में दिलचस्पी रखते हैं लेकिन चाह कर भी इसका बिचड़ा आच्छादन नहीं किया जा रहा है। मृगशिरा के शेष नौ दिनों के साथ आर्द्रा नक्षत्र का भरोसा रह गया है।
मानसून की बारिश की प्रतीक्षा कर रहे किसान
सामान्यत: वर्षा होने के बाद आर्दा नक्षत्र में धान का बिचड़ा किसान डाल पाते हैं। जिले में प्रकृति के रहमोकरम पर टिकी खेती-किसानी की बाध्यता ही कही जाएगी कि रोहिणी नक्षत्र में बिचड़े का आच्छादन संभव नहीं हो पाता है। वर्तमान में जिले में बारिश के अभाव में बिचड़ा आच्छादन का कार्य नहीं हो पा रहा है। मानसून के इंतजार में आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे जिले के किसान अब बाद के नक्षत्रों पर टिक गए हैं।
जिले के वारिसलीगंज प्रखंड में कुछ गिनती के किसानों द्वारा बिचड़ा अच्छादन कराए जाने की जानकारी कृषि विभाग द्वारा दी गयी है, लेकिन इनकी संख्या नगण्य है। किसान अपने पम्पसेट से खेत बना कर बिचड़ा लगा सके। शेष किसान बस आगे मौसम का साथ मिलने की उम्मीद में खेत जोतने और इसे तैयार करने की जुगत में लगे हुए दिख रहे हैं। वर्तमान परिस्थितियों में किसान 125 से 135 दिन की अवधि वाले धान के बिचड़ा लगाने की तैयारी में हैं।
पाताल गए पानी से दिख रही किसानों में निराशा
नक्षत्र के बीतते जाने की आपाधापी में किसान खेतों की सिंचाई कर बिचड़ा बोने का मन बना चुके हैं, लेकिन इसके लिए पाताल से पानी निकालने की जद्दोजहद करनी पड़ रही है। रोहिणी नक्षत्र में बीज नहीं डालने की चिंता किसानों को परेशान कर रही है उनके चेहरे पर उदासी दिख रही है। गौरतलब है कि 25 मई को शुरू हुआ रोहिणी नक्षत्र दो जून को समाप्त हो चुका है जबकि पूरे रोहिणी नक्षत्र में दो-तीन बार ही हल्की बारिश हुई और उस बारिश से खेत की जुताई सम्भव नहीं हो सकी।
परिस्थितियां अनुकूल नहीं, पर किसानों की तैयारी में तेजी
विपरीत परिस्थितियों में भी बीते सीजन में धान की अच्छी उपज से उत्साहित किसान खरीफ की चौकस खेती को लेकर कमर कसे दिख रहे हैं। समय से धान का बीज डालने के लिए बीज डालने वाली जमीन को तैयार करने के साथ ही किसान बीज आदि की खरीदारी भी कर चुके हैं।
किसानों का कहना है कि बिचड़ा वाले खेतों की अच्छी जोताई जरुरी है ताकि खेत में मौजूद खर-पतवार व घास मिट्टी में मिल जाए। तब जा कर खेत में पानी भरकर बीज डालने से बिचड़ा पुष्ट होता है। लेकिन अभी बारिश के लिए इंतजार ही करना पड़ रहा है।
कौआकोल दूधपनिया के किसान बलिराम प्रसाद, श्रीकांत सिंह, हिसुआ सोनसा के नरेश सिंह, एकनार के विजय सिंह आदि ने बताया कि रोहिणी नक्षत्र के बीत जाने के बाद मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्र पर आस लगी है। ऐसे में जून माह के अंत तक बिचड़ा की बुवाई की जा सकेगी। बाजार से अच्छी क्वालिटी के बीज की खरीदारी कर ली गयी है। सरकारी स्तर पर इस बार बीज का इंतजार हम सबने नहीं किया।
कृषि विभाग से बीज लेने का इंतजार लम्बा हो जाने का डर रहता है और इस चक्कर मे खेती पिछात हो जाने की आशंका रहती है। चूंकि अगात खेती लाभकारी होती है और इसलिए बीज बाजार से ही खरीदना सही विकल्प लगा। हालांकि, अब बारिश का अभाव कहीं खेती पिछात न कर दे, यह चिंता जरूर सता रही है।
सरकार के भरोसे नहीं दिख रहे किसान
किसान सरकार के भरोसे नहीं दिख रहे हैं। खेती के मोर्चे पर खुद के भरोसे किसान दिख रहे हैं। वारिसलीगंज माफी के किसान निवास प्रसाद, मोहन सिंह आदि ने कहा कि सरकार सरकारी दर पर बस खाद की व्यवस्था कर दे, इतना ही काफी रहेगा ,अन्यथा धान के बीज की प्रतीक्षा में कहीं से समझदारी नहीं है। बीते खरीफ सीजन की तरह इस बार भी रोहिणी में मौसम का साथ नहीं मिला। कई किसानों ने कहा कि खेती से लेकर बीज और कृत्रिम पानी का इंतजाम कर बिचड़ा रोपनी की गई है। विपरीत परिस्थिति बनी रही है, लेकिन अभी इस सीजन कुछ बेहतर की आस बनी हुई है। शायद आगे राहत रहे क्योंकि मानसून के समय पर आने का पूर्वानुमान है।
प्रकृति की रहमो करम पर है जिले की खेती
जिला अक्सर सूखे की चपेट में रहता है। यह यहां की नियति बन कर रह गयी है। जबकि जिले की खेती पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर है। वर्तमान हालात जलवायु परिवर्तन के कारण हैं। अब तो स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है। जिले के सभी जल संसाधनों का सूख जाना नियति बन कर रह गयी है। इलाके की नदियों समेत तालाब व अन्य सभी साधनों का हाल इतना बुरा हो चला है कि इसका समाधान दूर-दूर तक नहीं दिखता।
जलवायु परिर्वतन के दुष्प्रभाव से निरंतर दृष्टिगत हो रहे सूखे की स्थिति में जिले के किसान सहमे-सहमे से रहते हैं, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाने के कारण सब कुछ भाग्य पर छोड़ देने को बाध्य हो जाते हैं। मौसम की स्थिति यह है कि जब बारिश होनी है, तब नहीं होती है और जब नहीं होनी हो तो बारिश होती है।
कुल मिला कर सब भगवान भरोसे ही रह गया है। सामान्यत: सर्दी, गर्मी और बरसात चार-चार महीने का माना जाता है पर परिस्थितियां बदल कर रह गयी हैं। अब चार महीने की बजाय साल में आठ महीने गर्मी पड़ रही है। औसत बारिश 11 सौ एमएम के स्थान पर पांच सौ से छह सौ एमएम हो रही है। ऐसे में भूजल स्तर बुरी तरह से खिसक कर परेशानी का सबब बन रहा है। किसान मौसम के ऐसे ही मिजाज के बीच से अपने लिए सहूलियत तलाश रहे हैं और बिचड़ा आच्छादन को लेकर तैयारियों में मशगूल दिख रहे हैं।
भईया जी की रिपोर्ट