नवादा : धूप तो निकली है पर,सड़कों पे है कुहासा। जिले में उड़ रही है,धूल का ही राजहंस पासा।।विकास की बातें बस भाषणों में चुभती हैं।यहां तो सड़कें भी जनता की आँखें झुलसाती हैं। जनप्रतिनिधि हैं मौन,और अधिकारी कहीं व्यस्त। धूल फाँकती जनता, व्यक्त कर रही है सिर्फ़ हताशा। मास्क नहीं, चश्मा नहीं पर ज़रूरत है यहाँ सबकी। क्योंकि सड़क नहीं,धूल की नदी बहती है नवादा की।
जिला मुख्यालय में चंद कदमों की दूरी पर तीन नंबर स्टैंड का क्षेत्र एक गंभीर सवाल खड़ा करता है। आखिर जनता कब तक “विकास” के नाम पर धूल फाँकती रहेगी? सामान्य नागरिक, दुकानदार, बाइक सवार से लेकर छोटे बच्चे तक हर कोई इस धूल भरे वातावरण में अपनी सेहत को दांव पर लगा रहा है।तस्वीरें इस बात की गवाही है कि जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की नींद अब तक खुली नहीं है।हर दिन धूल से ढकी सड़कों पर
निकलना बीमारी को न्योता देने जैसा है।बच्चों को सांस लेने में परेशानी होती है और आंखों में जलन आम हो गई है। क्या ये हालात देखकर भी आंखें बंद रखना उचित है?क्या धूल में दबे इस नवादा को आप ‘विकसित भारत’ का हिस्सा मानते हैं? इस प्रकार के गंभीर सवाल जनता जन प्रतिनिधि से लेकर अधिकारियों से पूछ रही है। है जबाब किसी के पास। अगर नहीं तो फिर विकास कहां?
भईया जी की रिपोर्ट