परमात्मा की उपासना का सर्वाधिक प्रशस्त मार्ग नाम की उपासना है। सर्वत्र और सर्वदा नाम का आश्रय सुलभ है। नाम जप करने में देश-काल और पात्र का विचार नहीं करना पड़ता। इसीलिये स्वामी श्रीयुगलानन्यशरण जी ने नाम को सर्वोपरि बताया और अपनी शिष्य-परम्परा में इसका प्रसार किया। उनकी परम्परा में आचार्यपीठ श्रीलक्ष्मण किला के आचार्य स्वामी सीतरामशरण जी ने न केवल सीताराम नाम की आजीवन साधना की, बल्कि अपने प्रवचन, लेखन और सतत व्याख्यानों के द्वारा नाम-महिमा की प्रतिष्ठा की। उनके विरक्त शिष्य श्रीजानकीशरण मधुकर ‘मुठिया बाबा’ ने गुरुसेवा परायण रहकर नाम की अद्भुत उपासना की।
उक्त बातें श्रीरसिक शिरोमणि मन्दिर – चिरान्द में श्रीसीताराम नाम यश संकीर्तन यज्ञ के समापन अवसर पर पधारे सन्तों ने कहीं। महान्त मैथिलीरमणशृण लक्ष्मणकिलाधीश जी ने मुठियाबाबा की गुरुनिष्ठा का संस्मरण दुहराया। बक्सर से पधारे महान्त राजारामशरण जी ने कहा कि स्वामी किलाधीश जी महाराज की नाम-निष्ठा का फल था कि उनके शिष्य जानकीशरण जी मधुकर जी ने पूरे सीतामढ़ी-छपरा-मुजफ्फर पुर क्षेत्र में नामजप का का प्रचार किया।
हनुमत निवास अयोध्या से पधारे आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण में नामजप का शास्त्रीय महत्त्व बताते हुए स्वामी युगलानन्यशरण जी की नामकान्ति के छन्द के माध्यम से कहा कि भक्ति का वास्तविक स्वरूप नामनिष्ठा से व्यक्त होता है। गोधरौलीधाम-फतेहपुर आये, महान्त सीताहरण जी ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर बड़ी संख्या में नामजापक सन्त-भक्तों के अतिरिक्त पटना, मुजफ्फरपुर, छपरा आदि स्थानों से आये हुये भक्त सम्मिलित हुए। यज्ञ की समाप्ति पर आरती-प्रवचन के साथ ही विशाल भण्दारे में बड़ी संख्या में लोगों ने प्रसाद पाया।