प्रशांत रंजन
पटना चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल यानी पीएमसीएच इस वर्ष अपनी स्थापना की सौवीं वर्षगांठ मना रहा है। ऐसे में इसके अतीत गौरव-गान के अलावा वर्तमान में इसके द्वारा झेले जा रहे रोगियों के दबाव तथा भविष्य की चुनौतियों का आकलन करने का भी सही समय है।
पहला, बिहार-झारखंड के अलावा नेपाल के तराई क्षेत्र के लोग भी जब स्थानीय स्तर पर उपचार कराकर स्वस्थ नहीं हो पाते हैं, तो वे पीएमसीएच की ओर आंखों में उम्मीद लिए दौड़ पड़ते हैं। कई वर्षांे से देख रहा हूं कि मीडिया जगत में प्रायः समाचार आते रहे हैं कि पीएमसीएच में लकड़ी के बेंच पर लिटाकर अथवा भूमि पर मरीज को बैठाकर स्लाइन चढ़ाया जा रहा या अन्य उपचार किया जा रहा। ऐसे में इस अस्पताल की कुव्यवस्था वाली छवि बनने लगती है। हालांकि, यह सिक्के का एक ही पहलू है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अन्य अस्पतालों के विपरीत पीएमसीएच अपने दर पर आए हुए किसी भी रोगी को बेड अनुपलब्धता का हवाला देकर वापस जाने को नहीं कहता। यह तो हुई भर्ती रोगियों को लेकर स्थति।
दूसरा, ओपीडी में भी समय के साथ रोगियों की संख्या बढ़ती गई है। आजकल प्रतिदिन 1200 से 1500 मरीज उपचार कराते हैं, जबकि चिकित्सकों की संख्या उस अनुपात में नहीं बढ़ी है। इससे हर मरीज को डॉक्टरों द्वारा कम समय देना स्वाभाविक है। इस परिस्थति से रोगियों के बीच धारणा बन जाती है कि पीएमसीएच में डॉक्टर पर्याप्त समय नहीं देते। उधर, ओपीडी में सेवा देने वाले चिकित्सकों की विवशता होती है कि 2 बजे तक जितने रोगियों का निबंधन हो चुका है, उन्हें देखकर ही उठना है। यहां हमें यह समझना चाहिए कि अस्पताल में बेड या डॉक्टरों की संख्या बढ़ाना सरकार का दायित्व है, इसमें चिकित्सकों को दोष दिया जाना उचित नहीं। प्रसन्नता की बात है कि इस दिशा में बिहार सरकार ने बड़ा कार्य शुरू कर दिया है। 8 फरवरी 2021 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 5544 करोड़ रुपए वाले मेगा प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था, जिसके तहत तीन चरणों में अगले 7 वर्षों में पीएमसीएच को 5462 शय्या वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल बनाया जाना है। सबसे बड़ा अस्पतला चीन का झेंगझू मेडिकल यूनिवर्सिटी है, जहां 7000 शय्या की व्यवस्था है।
तीसरा, अपने मेगा प्रोजेक्ट के पूर्ण होने के बाद पीएमसीएच दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल बन जाएगा। हालांकि आज भी बिहार के किसी भी हिस्से में रहने वाले सामान्य परिवार की सबसे बड़ी आस पीएमसीएच ही है। जागरुकता के अभाव में एक समस्या आती है। कई बार गंभीर रोगी के परिजन जानकारी के अभाव में या दलालों के चंगुल में फंसकर नर्सिंग होम या छोटे निजी अस्पतालों में चले जाते हैं, जहां उस रोग विशेष के उपचार लिए न तो उपकरण होते हैं और न ही कुशल चिकित्सक। परिणाम होता है कि कुछ दिन मरीज को अस्पताल में रखकर धन ऐंठने के बाद नर्सिंग होम वाले हाथ खड़े कर देते हैं। अन्यत्र कोई उपाय नहीं पाकर अंत में रोगी को पीएमसीएच लाया जाता है। तब तक उसकी स्थिति बद से बदतर हो चुकी होती है। ऐसे में अनहोनी हो जाने पर सारा कलंक पीएमसीएच के माथे पर लग जाता है। अस्पताल के कई पूर्व व वर्तमान चिकित्सक विश्वास के साथ कहते हैं कि अंतिम क्षण में पीएमसीएच लाने के बदले अगर सही समय पर उसी रोगी को लाया जाए, तो उसके स्वस्थ होने संभावना कई गुना बढ़ जाती है, क्योंकि अन्य छोटे अस्पतालों के मुकाबले पीएमसीएच के पास योग्य चिकित्सकों की टीम व अत्याधुनिक उपकरण हैं।
चौथा, 2013 के पहले बिहार सरकार के पास स्वायत्त आईजीआईएमएस समेत 7 सरकारी मेडिकल कॉलेज थे। अब 14 हो गए हैं। एम्स, पटना व इएसआइसी अस्पताल, बिहटा इसमें शामिल नहीं हैं। 8 निजी मेडिकल कॉलेज हैं। आंकड़े देने के पीछे यह तात्पर्य है कि डेढ़ दशक में बिहार में दोगुने से अधिक मेडिकल कॉलेज हो गए, लेकिन पीएमसीएच की भीड़ नहीं घटी। यहां यह ध्यान रखना है कि इन वर्षों में जनसंख्या दोगुनी नहीं हुई। नए मेडिकल कॉलेज खुलने के बाद भी पीएमसीएच में भीड़ घटने के बजाय बढ़ गई है, क्योंकि नए खुले अस्पतालों में गुणवत्ता की भारी कमी है। यानी संख्या गिनाने की दृष्टि से मेडिकल कॉलेज भले खोले हैं, लेकिन वे अपने उद्देश्यों की पूर्ति में पूरी तरह सक्षम सिद्ध नहीं हुए हैं। इस समस्या को भी रेखांकित किया जाना आवश्यक है।
चिकित्सा जगत में अस्पतालों को मुख्यतः तीन वर्गों में रखा जाता है। प्राइमरी, सेकेंडरी व टर्सियरी। एम्स, आईजीआईएमएस व पीएमसीएच आदि टर्सियरी केयर के अस्पताल हैं, जहां अतिगंभीर रोगी के उपचार के लिए सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सक, अत्याधुनिक उपकरण व चिकित्सीय शोध की सुविधा आदि हैं। उससे नीचे सकेंडरी केयर के अस्पताल हैं, जहां जिलों में स्थित मेडिकल कॉलेज, सदर अस्पताल व अन्य अस्पताल हैं। प्रखंड व अनुमंडल में पीएचसी व सीएचसी प्राइमरी केयर की सुविधा उपलब्ध कराते हैं।
समस्या नीचे के दोनों स्तरों पर अधिक है। सबसे पहले चिकित्सकों की कम संख्या है। बिहार के सरकारी अस्पतालों में स्थायी चिकित्सकों के लगभग 13 हजार पद स्वीकृत हैं, जिनमें 50 प्रतिशत स्थायी चिकित्सकों के पद रिक्त हैं। सरकारी अस्पतालों में संविदा वाले लगभग पौने पांच हजार पद स्वीकृत हैं, जिनमें एक तिहाई पद रिक्त हैं। इसके अलावा चिकित्सीय उपकरणों की अनुपलब्धता। अगर उपलब्ध हैं भी तो उनके रखरखाव में भारी कमी है। सबसे चिंतनीय प्रश्न है कि सरकारों का अधिक ध्यान व ऊर्जा टर्सियरी केयर अस्पताल पर व्यय होती है। जबकि, एक टर्सियरी केयर अस्पताल के खर्चे में सौ प्राइमरी या दस से 15 सकेंडरी केयर के अस्पताल खोले व मेंटेन किए जा सकते हैं। अगर इन दो स्तरों के अस्पतालों पर ध्यान दिया जाए, तो पीएमसीएच जैसे अस्पतलों पर न केवल दबाव कम होगा, बल्कि अतिगंभीर रोगियों को समुचित उपचार भी होगा। पीएमसीएच को उसकी सौवीं वर्षगांठ के अवसर पर व्यवस्था की ओर यह उपहार होगा।