डॉ. कृष्णा पांडेय
(निदेशक, आरएमआरआई, पटना)
छात्र में रूप में पटना मेडिकल कालेज से मेरा संबंध 1983 से शुरू हुआ। एमबीबीएस से लेकर एमडी तक की मेरी शिक्षा वहीं से हुई। यह सुखद संयोग है कि जिस वर्ष पटना मेडिकल कालेज अपना अमृत महोत्सव मना रहा था, उस समय मैं वहां का छात्र था। उस अवसर पर भी विशेष समारोह का आयोजन हुआ था। हम छात्रों में उस आयोजन को लेकर उत्साह था। अब हमारे मातृ संस्थान का शताब्दी समारोह हो रहा है। जब मैं छात्र था, उस समय भी पीएमसीएच में मरीजों की अत्यधिक भीड़ होती थी। पीएमसीएच के अलावा आईजीआईएमएस भी सरकारी अस्पताल के रूप में करना शुरू कर दिया था। लेकिन, वहां से भी गंभीर मरीज पीएमसीएच भेजे जाते थे। दुर्घटना के शिकार गंभीर मरीजों के लिए पीएमसीएच ही एक मात्र सहारा था। मरीजों की अत्यधिक भीड़ के कारण रात-दीन काम करना पड़ता था। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ मरीजों की संख्या में भी वृद्धि के कारण उस समय भी संसाधन की कमी महसूस होती थी। लेकिन, इसके बावजूद सभी मरीजों को देखलेने और यथा संभव उपचार कर देने की एक संस्कृति वहां के चिकित्सकों में थी। यह अन्यत्र दुर्ल्रभ है।
आज भी मै अपने मातृ संस्थान से हृदय से जुड़ा हुआ हूं। एलुमीनाई एसोसिएशन हमारे इस भावना को मूर्त रूप प्रदान करता है। मेरा प्रयास रहता है कि कुछ दिनों के अंतराल में अपने संस्थान में अवश्य जाऊं। पीएमसीएच में योग्य शिक्षकों की परम्परा रही है। इस संस्थान में बिहार के प्रतिभावान छात्रों को जब योग्य शिक्षकों का सानिध्य प्राप्त होता था तब वे देश-विदेश में नाम कमाने वाले चिकित्सक बन जाते थे। डा. अखिलेश शरण, डा. डीके श्रीवास्तव, डा. इंदु भूषण सिन्हा, डा. एसके डिडवानियां, डा. विजय प्रकाष, डा. अजय कुमार, डा. गौरी शंकर सिंह जैसे योग्य शिक्षकों से जो शिक्षण-प्रशिक्षण मिला वही हमारा आधार बना।
थोडे समय के लिए हमारा पीएमसीएच लड़खड़ाया। शताब्दी वर्ष के अवसर पर आषा की किरण जगमगाती दिख रही है। पीएमसीएच अब एशिया का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा बड़ा मेडिकल संस्थान बनने जा रहा है। यह हमारे जैसे हजारों पूर्ववर्ती छात्रों के लिए गर्व और आनन्द की बात है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार और यहां के स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पाण्डेय इसके लिए विशेष धन्यवाद के पात्र हैं। पिछले शताब्दी के अंतिम दशक और वर्तमान शताब्दी के प्रारंभ में पीएमसीएच को लेकर जिस प्रकार की अवधारणा लोगों में बनने लगी थी वह अत्यंत पीड़ा दायक था। अब तेजी से स्थितियां बदल रही है। पीएमसीएच फिर से अपने गौरव की ओर लौअ रहा हैं। शोध और तकनीक मेडिकल साइंस की रीढ़ है। अक्सर लोग कहते हैं कि षिक्षण और शोध के मामले में पीएमसीएच का पुराना दिन लौटने वाला नहीं है। परन्तु मैं ऐसा नहीं मानता। एनएमसी ने प्रोन्नति के लिए शोध को अनिवार्य बना दिया है। ऐसे में छात्रों व चिकित्सकों का अपना शोध पत्र प्रस्तुत करना ही होगा। मेडिकल साइंस में शोध का आधार क्लीनिकल अनुभव होता है। क्लीनिकल अनुभव के लिए शिक्षकों के सानिध्य में मरीज को देखना आवश्यक होता है। इस प्रकार शोध को कैरियर से जोड़कर ऐसी परिस्थिति का निर्माण होने जा रहा है जिसमें शोध का वातावरण तैयार होगा।