नवादा : कहने को अधिवक्ता को विद्वान कहा जाता है, लेकिन उनकी दुर्दशा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि व्यवहार न्यायालय में उन्हीं विद्वानों को न्यायिक कार्य करने के लिए उनके सर के उपर छत तक नहीं है। वारिश के दिनों में वर्षा की बूंदें उनके कागजातों एवं पोशाकों पर टपकती हैं। गर्मियों में सूर्य की तपिश में उन्हें पल पल तपना औऱ तड़पना पड़ता है जिसके कारण उनकी तवियत खराब हो जाती है।
व्यहार न्यायालय के नये भवन के उद्घाटन हुए लगभग 25 साल होने को है ,लेकिन अबतक इनकी समस्या पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। न तो शासन और ना प्रशासन। अधिवक्तागण समस्याओं को लेकर कई बार आंदोलन कर चुके हैं लेकिन हिंदी का एक गाना तुम तो धोखेबाज हो, वादा कर के भूल जाते हो।
ठीक उसी तरह इन विद्वानों को झूठे वादे कर उन्हें मुंगेरी लाल के हसीन सपने दिखाकर बरगला कर अखबार में फ़ोटो तो खिंचवा लेते हैं, लेकिन वादे का परिणाम धरातल पर नहीं उतर पा रही है जिसके कारण शासन एवं प्रशाशन की नियत व नीति पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है। जिला अधिवक्ता संघ के पूर्व महासचिव संत शरण शर्मा ने बताया कि बेहतर व्यवस्था का सपना देखते देखते न्यायलय में न्याययिक करने वाले कई अधिवक्ता दुनिया से विदा हो गए, लेकिन अधिवक्ताओं को भवन तो दूर बरामद तक नसीब नहीं हो सका।
भईया जी की रिपोर्ट