नवादा : विविध संस्कृतियों और रीतिरिवाजों के साथ देश भर में मनाये जाने वाले मकरसंक्राति का त्यौहार अपने अलग अलग रूपों के बावजूद एकीकृत होकर सामने आता रहा है। नगर समेत सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसकी झलक देखी जा सकती है। बड़े-बुजुर्गों में जहाँ दही-चूड़ा-तिलकुट के ज्योनार की ललक दिखती है वहीं नई पीढ़ी में पतंगबाजी का उत्साह शिखर पर होता है।
मंगलवार को तड़के पतंगों की दुकानों पर वयःसंधि उम्र के बच्चों की रेलमपेल भीड़ इसका साक्षी बना। पतंग, मांझा और लटई की गुणवत्ता तथा डिजाइन की विविधता को जांचते परखते खरीदने लेने की होड़ से नवादा में पतंगबाजी की संस्कृति व्यापक रूप ले सकती है । हालांकि नगर में पतंगों का व्यवसाय काफी संकुचित है, किन्तु छोटे छोटे दुकानों पर उमड़ती हुई भीड़ यहां के बाजार को विस्तार दे सकती है। बड़े घराने के बच्चे जहाँ अपने बिल्डिंग के छत से पेंच लड़ाते चहकते हैं वहीँ गरीब बच्चे भी खुले मैदान में पतंग को ऊंचाई देने की होड़ में शामिल होते हैं।
इस बार नगर के हरिश्चंद स्टेडियम, गांधी स्कूल का मैदान, स्टेशन परिसर, खुरी नदी का तट और टोले मुहल्ले के परती जमीन इन बच्चों के पतंग महोत्सव का साक्षी बना। पतंगों से आच्छादित नीले आकाश का सौंदर्य जितना मनभावन दिखा उतना ही कटते, टूटते पतंगों का जमीन पर गिरना और बच्चों का हुजूम को लूटते हुए देखना आनंददायक प्रतीत हुआ। मकर संक्रांति के विभिन्न रूपों पोंगल, बिहू, पौष संक्रांति या लोहड़ी जैसे त्योहारों को पतंगबाजी के माध्यम से एकीकृत कर देना नई पीढ़ी को राष्ट्रीय विरासत को कंधे पर उठा लेने जैसा है।
भईया जी की रिपोर्ट