नवादा : वर्तमान में जीते हुए अतीत को स्मरण करना उलझन से भरा होता है। लेकिन, बहुत बार अतीत को याद करना सुखद अनुभूतियों से भरा होता है। बात वर्ष 1980 का है, जब बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी नेता एवं पूर्व मंत्री कपिल देव प्रसाद सिंह इस लोकसभा क्षेत्र के उम्मीदवार बने थे। इसी बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में शेखपुरा विधानसभा भी पड़ता था। कपिल देव बाबू का हस्तलिखित पत्र मुझे मिला, जिसमें उन्होंने शेखपुरा विधानसभा क्षेत्र पहुंचकर चुनाव प्रभारी के रूप में काम करने का आग्रह किया था। इस संदर्भ में वर्ष 1980 के आस पास मेरा एक लेख दैनिक अखबारों में मैं जब चुनाव प्रभारी बना शीर्षक से लेख प्रकाशित हुआ था।
इस कारण यह बात विस्तार से लिखने की फिलहाल जरूरत नहीं है। अपनी जवानी की याद करते हुए जिले के वरिष्ठ मगही कवि , साहित्यकार व पत्रकार राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकार ने कहा कि शेखपुरा शहर में राजो बाबू के भय के कारण कोई कार्यालय के लिये भवन नहीं मिला। प्याज के गोलेदार ने मुझसे आग्रह किया कि हुसैनाबाद में आप मेरे गोदाम को कार्यालय के रूप में उपयोग कर सकते हैं। कपिल देव बाबू ने एक गाड़ी और 3000 रूपये प्रदान किया, उसके बाद मैं हुसैनाबाद आ गया। बालपन से हुसैनाबाद के नवाब के संदर्भ में एक किस्सा सुनता आ रहा था कि हुसैनाबाद के नवाब मंजूर हसन शाम में अपने अधिनस्थ काम करने वाले जिसको अमला बोला जाता था से पूछा कि शाम होते ही कौन हल्ला करता है।
अमलाओं ने कहा कि हुजूर, ठंड के कारण सियार हुआ-हुआ करता है, तब नवाब ने कहा इन सबों के लिए गर्म कपड़े भेज दो, अमलों ने कहा भेज देता हूं, लेकिन फिर शाम होते ही सियार हुआ-हुआ करने लगा तब नवाब ने पूछा आखिर अब क्यों हुआ-हुआ करता है, तब अमलों ने जवाब दिया कि ये सब दुआ दुआ करता है, आपको बधाई दे रहा है। जब हुसैनाबाद आया तब एक विशाल, भव्य और कलात्मक मस्जिद देखा और एक गहरे तालाब के चारों तरफ भवनों के टूटे-फूटे रूप को भी देखा। कुछ भवन सुंदर और सुरक्षित भी थे, उसमें पुआल बिछा दिया गया और आने-जाने वाले कार्यकर्ता उसी में सोने लगे ।
आसपास में पुराने ढंग के कई मकान भी थे, उस मकान में रहने वालों ने भी कहा कि हम सब भी नवाब जी के परिवार के ही हैं।
मंजूर हसन की पत्नी खुर्शीद बानो की पुत्री जैबुनिशां जो कुमकुम नाम से प्रसिद्ध हुई बालीवुड अभिनेत्री इसी गांव से थी। कुमकुम 15 वर्ष की आयु में हुसैनाबाद छोड़कर अपने पिता और मां के साथ कोलकोत्ता चली गई, लेकिन कोलकत्ते में मंजर हसन ने दुसरी शादी कर ली, विवाद होने पर खुर्शीद बानों अपनी पुत्री के साथ लखनउ आ गई। इधर, उसके पिता मंजूर हसन अपनी नई पत्नी के साथ पाकिस्तान चले गए। खुर्शीद बानों अपनी पुत्री कुमकुम में नृत्य के प्रति झुकाव देखकर बनारस के रहने वाले शंभू महाराज के पास कथक नृत्य सीखने के लिए भेजी। कुमकुम कुछ दिनों में ही गीत संगीत में निपुण हो गई और मां के आदेश पाकर शमसेद आलम जो लखनउ के रहने वाले थे और बंबई में बस गए थे के पास भेज दी।
कुछ दिनों तक कई फिल्मों में छोटे आकार की भूमिका मिली, लेकिन गुरु दत्त की फिल्म आर-पार में शीर्षक के अनुसार के गीत गाकर कुमकुम की पहचान बढ़ी और फिर देश के कई बड़े कलाकारों के संग काम करने का मौका मिला। खासकर मदर इंडिया में इनके गीत और नृत्य को बहुत सराहा गया। आज भी पुराने फिल्मी गाने सुनने वालों के लिए ग्रामीण परिवेश में कुमकुम के गीत-घुंघट नहीं खोलूंगी सैंया तोरे आगे, कालजयी गीत के रूप में सुना जाता है। भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोरे पियरी चढैवो में मगही शब्दों की भरमार है। यह फिल्म आकर्षक और कर्णप्रिय बनाने में कुमकुम का बड़ा योगदान है।
वर्ष 1975 में कुमकुम की शादी लखनउ निवासी सज्जाद अकबर खान के साथ हो गई और वह अपने पति के साथ अरब देश चली गई, लेकिन भारत के प्रति कुमकुम के मन में प्यार था। वर्ष 1995 में लौटकर भारत आई और अपने परिवार के साथ मुंबई में रहने लगी। 28 जुलाई 2020 को देह त्याग किया, लेकिन कुमकुम के नृत्य, गीत और संगीत का जादू आज भी कायम है। मगध के प्रबुद्ध जन, कला और साहित्य से जुड़े हुए लोग आज भी स्मरण करते हैं मगध की उस बेटी को जिसने कला के क्षेत्र में मगध का गर्व बढ़ाया है।