अजमेर दरगाह के अंदर पुरातत्व विभाग द्वारा सर्वेक्षण की मांग तेजी से उठने लगी है। इसके बाद से अजमेर दरगाह को लेेकर कई प्रकार की बातें सामने आ रहीं है। हम भी इस बवाल के कारणों की पड़ताल कर रहे हैं। इस प्रकरण में हम विश्वविख्यात धर्मसम्राट करपात्री स्वामी के ज्येष्ठ शिष्य और पूरे भारत का पैदल ही भ्रमण करने वाले सिद्ध संत बाबा पशुपति नाथ के कथन और भविष्यवाणी के संग्रह में अजमेर के सम्बंध में उपलब्ध प्रमाण व सूचनाओं की यहां चर्चा करने जा रहे हैं।
वामपंथी इतिहासकारों ने बनाया सूफी संत
अभी तक भारत में मोइनुद्दीन चिश्ती को सूफ़ी संत के रूप में दर्शाने की परंपरा रही है. इसमें बड़ा योगदान रोमिला थापर, इरफान हबीब सरीखे वामपंथी विचारधारा से प्रेरित इतिहासकारों का रहा है. यह भी एक तथ्य है कि आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेसी शासन में इन्हीं इतिहासकारों को तबज्जों मिली और इन्होंने ने ही जो इतिहास हमें बताया वही हम जान सके.
बाबा पशुपाति नाथ की भविष्यवाणी
लेकिन, संतों की ज्ञान परंपरा में जो अजमेर तथा मोइनुद्दीन चिश्ती के बारे में कहा गया वह वामपंथी इतिहासकारों के विचारों से बिलकुल अलग है. बाबा पशुपाति नाथ के अनुभव पर आधारित वाणी का संग्रह-‘योगी के रहस्य भेद’ नामक पुस्तक में करीब दो दशक पूर्व से प्रकाशित है। प्रसिद्धि से दूर रहने वाले बाबा पशुपतिनाथ को काशी के संत व साधक शिव का अवतार मानते हैं। भारत के संत व आध्यात्मिक लोग उन्हें त्रिकालदर्शी मानते है क्योंकि उनके मुख से निकली वाणी सत्य सिद्ध होती रही है। बाबा ने मोइनुद्दीन चिश्ति के बारे में बहुत स्पष्ट शब्दों में बहुत कुछ कहा है। उन्होंने उनके स्थान के बारे में वर्षों पूर्व भविष्यवाणी की थी।
21 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्ष यानी 2000 में बाबा ने कहा था यवन हो या मुसलमान कोई भी भारत को तलवार के बल पर नहीं जीत सके थे। संकट के समय भारत के ऋषि व ब्राह्मण, क्षत्रियों के साथ रक्षा के लिए खड़े हो जाते थे। भारत की रक्षा दैवी शक्तियों के कारण होती थी। मलेच्छों ने षड्यंत्र कर के सबसे पहले भारत की दैवी शक्ति के प्रमुख केंद्र अजयमेरू को अपवित्र कर उसे निश्तेज किया। वहां के ब्राह्मण सबसे पहले भ्रमित हुए तब ऋषियों के इस देश का तेजी से पतन शुरू हो गया था। अजयमेरू को ही आज कल लोग अजमेर कहते हैं।
धर्म रक्षा के लिए मेरूदंड से मिली महाशक्ति
बाबा पशुपति नाथ की पुस्तक में संग्रहित वाणी के अनुसार इस पुण्यभूमि यानी भारत को सुरक्षित रखने के लिए हमारे पीतर ऋषियों ने बहुत उपाय किए थे। लेकिन, कलि के प्रभाव के कारण हम अपने पितरों की थाती को संभाल नहीं सके। भारत के उत्तर-पश्चिम के मध्य यानी वायव्य कोण में एक स्थान है, जिसे पुष्कर कहते हैं। उसे कभी ब्रह्मऋत भूमि भी कहा जाता था। वहां कभी माता सरस्वती, माता गंगा की तरह साक्षात् प्रवाहित होती थी। उसी स्थान पर कभी परम पिता ब्रह्मा ने यज्ञ कर के इस पुण्यभूमि की सुरक्षा के लिए मेरू दंड स्थापित किया था। बाद में उसे अजय मेरू भी कहा गया। महाभारत काल के बाद जब भी इस पुण्यभूमि पर धर्म पर संकट आया तब उसी मेरूदंड से धर्म की रक्षा के लिए शक्ति मिली थी। वर्तमान में उस शक्ति केंद्र को लोग अजमेर कहते हैं।
बाबा की वाणी के अनुसार जब तक वह अजय मेरू अपने पावन स्वरूप में रहा तब तक भारत को कोई मलेच्छ युद्ध में पराजित कर ही नहीं सका था। हमारा भारत तलवार के बल पर नहीं जीता गया है बल्कि संत के वेश में भेजे गए कालनेमियों ने षड्यंत्र कर भारत के अजय मेरू को पहले अपवित्र किया। तब भारत के राजा के मन की प्रवृति बदली और सम्पूर्ण मानव समाज के हित करने वाला यह देश मलेच्छों के अधीन हो गया।
तलवार के बल पर पूरा नहीं हुआ मलेच्छों का सपना
बाबा ने अजमेर के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा है कि तलवार के बल पर भारत को अपने अधीन करने का जब मलेच्छों का सपना पूरा नहीं हुआ तब मलेच्छों के पिशाच विद्या उपासकों ने इसके शक्ति के रहस्य का पता लगाया। इसके बाद मुईनुदीन चिश्ति नामक कपटी को संत वेश में भारत भेज दिया। वास्तव में वह पिशाच विद्या का जानकार था। इस अर्थ में तुम उसे कालनेमी कह सकते हो। रावण ने कालनेमी नामक अपने एक राक्षस को संत का वेश बनाकर हनुमान जी को दिग्भ्रमित करने के लिए भेजा था जिसका वध हनुमान जी ने कर दिया था।
कालनेमी की तरह भारत आने के बाद उस चिश्ति ने सबसे पहले पिशाच विद्या के प्रयोग से अजय मेरू को अपवित्र कर दिया। इसके बाद वहां के उस समय के शासक की मनोवृति बदलने लगी। वह अभिमानी और कामी हो गया। उसने कनौज के राजा की एक कन्या का अपहरण कर लिया था। यह भारत की मर्यादा के प्रतिकूल था। राजा राम ने जो मर्यादा स्थापित किया था वहीं भारत की मर्यादा है। अजय मेरू की पवित्रता भंग होते ही वहां के राजा का व्यवहार व आचरण पतनशील हो गया। उसके दोस्त दुश्मन होने लगे। इस स्थिति को संभालने की जिम्मेदारी उस राज्य के पुरोहित व गुरु की थी। लेकिन, उस कालनेमी को वे भी पहचान नहीं सके और उसके मायाजाल में फंस गए।
इस प्रकार ब्राह्मण भी अपने कर्म से विचलित हुए तो भारत की दुर्दशा शुरू हो गयी। ऐसी स्थिति का लाभ लेते हुए उस राजा से पूर्व में पराजित गोरी नाम का मलेच्छ ने भारत पर फिर से आक्रमण कर दिया था जिसमें भारत के राजा पृथ्वी राज पराजित हुए। उसने उनका अपमान किया और हत्या भी कर दी थी। बाबा अत्यंत कठोर शब्दों में कहते हैं कि भारत की ऋषि संस्कृति को नष्ट करने वालों में सबसे बड़ा अपराधी तो वह कामी, कुटिल मलेच्छ मुइनुदीन चिश्ति ही हुआ। ब्रह्माजी के यज्ञ व माता सरस्वती के आशीर्वाद से तीर्थ की श्रेणी में आए उस स्थान को लोग अब उस कपटी मलेच्छ का स्थान बता रहे हैं। यह तो अनर्थ है। एक बात जान लो जो जैसा करता है उसे उसका फल भोगना ही पड़ता है।
उस मलेच्छ ने पिशाच विद्या के बल पर जो किया था उसका फल तो उसे भोगना पड़ा था। अंतिम समय में वह पागल होकर पत्थर पर अपना सिर पटकने लगा था। उसकी आत्मा तड़प रही थी तब उसके लोगों ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया था। उसी कमरे मंे तड़पकर उसका प्राणांत हो गया था। आज उसकी महानता के झूठे कसीदे काढ़े जा रहे हैं। बाबा के अनुसार यह भेद पूरे हिंदू समाज को जानना चाहिए। उस पाप स्थली पर जाकर नेता भी शिश नवाते हैं। ऐसेलोगों को प्रकृति दंड़ित करेगी। ये शारीरिक व मानसिक कष्ट के भागी होंगे। इससे भारत का भला नहीं होगा। उसका वह स्थान एक दिन वीरान होकर रहेगा।