आज संविधान दिवस है। विश्व का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश होने का हमें गर्व है। लेकिन क्या आपने भारत के मूल संविधान को देखा है? ईमानदारी से जवाब दीजिएगा। शायद नहीं। 75 वर्ष पूर्व आज ही के दिन यानी 26 नवम्बर 1949 को भारत की जनता की ओर से उनके प्रतिनिधि के रूप में संविधानसभा के अध्यक्ष एवं सदस्यों ने संविधान पर अपना हस्ताक्षर कर उसे अंगीकार किया था। इस प्रकार भारत के प्रत्येक नागरिक को अपना मूल संविधान देखने और समझने का अधिकार है।
संविधानक की मूल प्रति क्यों नहीं हुई सार्वजनिक?
लेकिन, दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत की पूरी आबादी के 99.99 प्रतिशत ने आजादी के सात दशक बाद भी अपने मूल संविधान का दर्शन नहीं किया। ऐसा क्यों? आजादी के बाद जो सरकारें बनी उसने भारत के संविधान की मूल प्रति को सार्वजनिक क्यों नहीं कराया? भारत के संसद और विधानसभा के सदस्यों के लिए संविधान की मूल प्रति कब सुलभ हुई? यदि हमें संविधान की रक्षा करनी है तो ऐसे कई प्रश्नों के उतर हमें ढूंढने होंगे। वैसे इन प्रश्नों के उतर सुलभ कराने की जिम्मेदारी सरकार और लोकतंत्र की संस्थाओं के भी हैं।
संविधान बचाओं का नारा, पर जानकारी कुछ नहीं
इसी बीच संविधान बचाओ का नारा जोर-जोर से उछाला जाने लगा है। इसके कारण संविधान समाप्त कर देने का भ्रम भयानक भूत बनकर भारत के जन को भ्रमित भी करने लगा है। हाल ही में हुए एक सर्वे से जो ज्ञात हुआ वह लोकतंत्र के लिए अत्यंत भयावह है। भारत के कथित शिक्षित वर्ग में भी 99.99 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्होंने भारत के मूल संविधान की प्रति को आज तक देखा ही नहीं है। इसमें वकील, प्रोफेसर जैसे लोग भी शामिल हैं।
किस संविधान को बचाने की कर रहे बात
जब हमने यानी भारत के लोगों ने मूल संविधान को देखा ही नहीं तो हम किस संविधान को बचायेंगे। मूल संविधान में क्यों असंख्य छेद कर दिए गए, इस रहस्य को हम कैसे जान पायेंगे। आइये, हम आपको भारत के मूल संविधान का दर्शन कराते हैं। ताकि आप अपने संविधान को देख सकें। बाबा साहेब के मूल संविधान के साथ क्या किया गया इसका प्रत्यक्ष अनुभव कर सकें।
ऐसा है संविधान की मूल प्रति का कवर
यह है संविधान का कवर जिस पर सरोवर में खिले कमल पुष्प को दिखाया गया है। हमारा मूल संविधान कलात्मक रूप से हस्त लिखित है जिस पर भारत की संस्कृति, आदर्श मानव मूल्य, राजनीतिक दृष्टि, सौम्य शक्ति और ज्ञान परंपरा को उद्भाषित करने वाले चित्र अंकित हैं। लंबे विमर्श के बाद तैयार संविधान का अंग्रेजी में कलात्मक हस्लेखन प्रेम बिहारी रायजादा सक्सेना ने किया। वहीं हिंदी में हस्तलेखन वसंत कृष्ण वैद्य ने किया। संविधान के 22 भागों की पृष्ठभूमि को पारिभाषित करने वाले चित्रों का निर्माण प्राख्यात चित्रकार नंदलाल बोस एवं ब्यौहर राम मनोहर सिन्हा ने किया।
प्रथम पृष्ठ : मूल संविधान की विषय सूची व उद्देशिका
सत्यमेव जयते लिखे अशोक स्तंभ के साथ मूल संविधान की विषय सूची व संविधान की उद्देशिका के पन्ने खुलते हैं। इसके बाद संविधान के प्रथम भाग के प्रथम पृष्ठ पर मोहनजोदाड़ो की खुदाई में मिले मुहर पर अंकित महादेव की सवारी नंदी का चित्र अंकित किया गया है। नंदी शक्ति सम्पन्ना एवं कर्मठता के प्रतीक हैं।
भाग दो का पहला पन्ना
यह है संविधान के भाग दो का प्रथम पृष्ठ जिसपर वैदिक काल के गुरूकुल का चित्र अंकित है। नागरिकता विषय से सम्बंधित इस भाग के प्रथम पृष्ठ पर अंकित यह चित्र प्रकृति के सान्निध्य में मानव निर्माण की भारतीय ज्ञान परंपरा का संदेश दे रहा है।
संविधान का तृतीय भाग
ध्यान से देखिए, यह सविधान के तृतीय भाग का प्रथम पृष्ठ है जिस पर वनवासी सीता, राम और लक्ष्मण का चित्र है। यह भाग हमारे मौलिक अधिकारों से सम्बंधित है।
संविधान का चौथा भाग
संविधान के चौथे भाग में राज्य के नीति निर्देषक तत्वों को रखा गया है। इस भाग के प्रथम पृष्ठ पर महाभारत युद्ध में अवसाद ग्रस्त अर्जुन को गीता का उपदेश करते श्रीकृष्ण का चित्र अंकित हैं।
संविधान का पांचवां भाग
संविधान के पांचवे भाग के प्रथम पृष्ठ पर मन को एकाग्र करते हुए मध्यमार्ग का अनुसरण कर अपने दायित्वों का निर्वहन करने की शिक्षा देने वाले गौतम बुद्ध का उपेदेश देता चित्र अंकित किया गया है। सौ पृष्ठ वाले इस भाग में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से संबंधित विधानों का वर्णन है।
संविधान का छठा भाग
संविधान के भाग छह के प्रथम पृष्ठ पर तपस्या में रत जैनों के अंतिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर का चित्र अंकित है। इस भाग में राज्यों की कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के लिए नियम लिखे गए हैं।
सातवां भाग
मूल संविधान का सातवां भाग राज्यों के निर्माण के सिद्धांत से सम्बंधित है। इसके पृष्ठ पर मौर्यकालिन महान भारत को दर्शाने वाला चित्र है। 1956 में संशोधन के बाद एक पृष्ठ का यह भाग विलोपित हो गया।
आठवां भाग
संविधान के आठवे भाग के प्रथम पृष्ठ पर फलों से लदे वृक्ष, ऊंचे-ऊंचे मकान के उपर छलांग लगाते कुबेर का चित्र है। इस चित्र को देखकर लोग यह भी कहते हैं कि यह हनुमान जी का चित्र है। राज्य क्षेत्रों के प्रशासन, संवैधानिक तंत्र विफल होने की स्थिति से संबंधित विधान इस भाग में हैं।
नौवां भाग
इसके बाद संविधान के भाग 9 पर गुप्वंश के महानतम शासक विक्रमादित्य के राजदरबार का चित्र अंकित है जिसमें चक्रवर्ती विक्रमादित्य अपने नौ रत्नों से विचार विमर्श करते दिख रहे हैं। त्रिस्तरीय स्वशासन यानी पंचायतीराज व्यवस्था से सम्बंधित विधान इस भाग में है।
10वां भाग
संविधान का भाग 10 सर्व सुलभ शिक्षा संबंधित विधि का निर्देश देता है। इसके प्रथम पृष्ठ पर विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय का चित्र अंकित है, जहां योग्यता के आधार पर कोई भी शिक्षा ग्रहण कर सकता था। इस विश्वविद्यालय को मजहबी मतांध बख्तियार खिलजी ने जला दिया था।
11वां भाग
इसी प्रकार संविधान के 11 वें भाग के प्रथम पृष्ठ पर अश्वमेध का घोडा दिख रहा है। इस भाग में केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का विभाजन किया गया है।
12वां भाग
संविधान का 12 वां भाग संपति, संविदा, लोकलेखा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित है। इसके प्रथम पृष्ठ पर नटराज एवं स्वास्तिक का चित्र अंकित है।
13वां भाग
यह है संविधान के भाग 13 का प्रथम पृष्ठ। इस पृष्ठ पर राजा सगर के प्रयत्न से गंगा के अवतरण को दर्शाने वाला चित्र अंकित है।
14वां भाग
स्ंविधान के 14 वें भाग के प्रथम पृष्ठ पर मुगल शासक अकबर के दरबार का चित्र है जिसने भारत की संस्कृति और परम्परा के अनुसार शासन करने का प्रयास किया था। इस भाग में लाकसेवा आयोग के गठन की प्रक्रिया से संबंधित विधान हैं।
15 और 16वां भाग
इसके साथ ही संविधान का भाग 15 गुरुगोविंद सिंह और शिवाजी महाराज के चित्रों के साथ शुरू होता है। संविधान का 16 वां भाग झांसी की रानी महारानी लक्ष्मी बाई और टिपू सुलतान के चित्रों के साथ शुरू होता है।
17 और 18वां भाग
देशी भाषाओं से सम्बंधित संविधान के 17 वें एवं 18 वें भाग के प्रथम पृष्ठ पर दांडी मार्च करते महात्मा गांधी एवं नोवाखाली में सम्प्रदायिक दंगा शांत कराते महात्मा गांधी के चित्र अंकित है।
19वां भाग
संविधान के 19 वें भाग का शुभारंभ आजाद हिंद फौज के साथ तिरंगे को सलाम करते नेताजी सुभाष बोस का चित्र अंकित है।
20, 21 व 22वां भाग
हमारे संविधान के 20 वें भाग पर नगाधिराज हिमालय का चित्र है, वहीं 21वें भाग पर मरूस्थल में सुरक्षा के लिए उंट से गमन करते थल सेना के जवान दिख रहे है। वहीं अंतिम 22 वां भाग जल सेना के प्रतीक चित्र के साथ शुरू होता है।
इन चित्रों के माध्यम से हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान के पीछे की सोच को व्यक्त किया है। लेकिन आज की कड़वी सच्चाई यही है कि हमारा मूल संविधान अभी तक हमसे दूर ही रहा है।