गोल्डेन हॉराइज़न: रिफ्लेक्शन्स ऑफ छठ पूजा
प्रशांत रंजन
लोक आस्था का महापर्व छठ जीवन का अभिन्न अंग है, जिसके बिना कुछ अधूरा सा लगता है। समय—समय पर अनेक रचनाकार अपनी कला के माध्यम से छठ की छटा को प्रस्तुत करते रहे हैं। चित्रकारी, संगीत, सिनेमा, साहित्य आदि में छठ के विभिन्न आयामों को अपने—अपने ढंग से रेखांकित किया जाता रहा है। इस वर्ष भी कई नए गीत आ गए हैं। इस कड़ी अस्मिता शर्मा की डॉक्यूमेंट्री ‘गोल्डेन हॉराइज़न: रिफ्लेक्शन्स ऑफ छठ पूजा’ का उल्लेख करना आवश्यक है, क्योंकि उन्होंने 20 मिनट में सारगर्भित रूप में छठी मइया की महत्ता का चित्रण किया है। कल ही यूट्यूब पर देखा।
विगत पांच वर्षों में छठ पर कई वृत्तचित्र देखने को मिले। इसे देखने हुए एक अनोखी बात दिखी कि विभिन्न कला विधा के तज्ञ लोगों के छठ पर महत्वपूर्ण इनपुट हैं। चित्रकार मनोज कुमार बच्चन, मीनाक्षी झा बनर्जी, रंगकर्मी निराला बिदेसिया, लोक गायिका रंजना झा जहां एक ओर कलात्मक, सृजनात्मक व बौद्धिक दृष्टिकोण से पक्ष रखते हैं, वहीं दूसरी ओर ढोल वाला और सबसे महत्वपूर्ण एक आस्थावान व्रती छठ के लोक दृष्टिकोण वाला पक्ष सामने लाते हैं। रचनाकार छठ के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, पारिवारिक व पारिस्थितिक पहलूओं की चर्चा करते हैं, वहीं ढोल वाला व व्रती छठ की प्रक्रिया, स्वरूप, परिवर्तन पर अपनी बात कहते हैं। एक ओर सूक्ष्म को रेखांकित किया जाता है, तो दूसरा पक्ष स्थूल का। इस प्रकार समाज के लगभग हर वर्ग के प्रतिनिधित्व का एक वृत्त पूर्ण होता है।
वृत्तचित्र की दृश्यावली-अनुकथन के लोकप्रिय प्रारूप पर अवलंबित होने के कारण इस डॉक्यूमेंट्री की सामग्री हर दर्शक वर्ग के लिए ग्राह्य है। इस सरल प्रारूप के पीछे फिल्मकार की दृष्टि की चर्चा करना चाहिए। अस्मिता शर्मा संवेदनशील फिल्मों की पक्षधर रही हैं और इसलिए एक फिल्मकार होते हुए भी एक सहज दर्शक—बोध उनके अंदर जीवंत रहता है। इस डॉक्यूमेंट्री की प्रोड्यूसर की हैसियत से उन्होंने छठ पर्व के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की हैं। निर्देशक प्रतीक शर्मा अपनी फीचर फिल्मों लोटस ब्लूम और गुटर-गूं में सामाजिक तानेबाने को प्रमुखता से दिखाया है। इस डॉक्यूमेंट्री में भी वे समाज को नहीं भूलते। जो लोग छठ पर्व में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होते हैं उन्हें इस वृत्तचित्र को देखना चाहिए एक नए ढंग से महापर्व की प्रस्तुति देखने के लिए। बाकी, देश दुनिया के वे लोग जो छठ को केवल मीडिया के माध्यम से देखते आए हैं, उन्हें जरूर देखना चाहिए।