आज शुक्रवार तड़के उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व का समापन हो गया। इसके साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत भी पूरा हो गया। राजधानी पटना समेत पूरे प्रदेश में श्रद्धालुओं ने विभिन्न घाटों और तालाबों के तट पर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया। इसके लिए आज सुबह 3 बजे से ही गंगा तथा अन्य नदियों—तालाबों पर बने घाटों पर लोगों की भीड़ उमड़ने लगी थी। इससे पहले कल शाम को व्रतियों ने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया था।
उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ व्रतियों ने 36 घंटे का अपना निर्जला उपवास का पारण किया। सभी के बीच ठेकुआ प्रसाद का वितरण किया गया। बता दें, उदीयमान सूर्य देने के पीछे पौराणिक मान्यताएं हैं। मान्यताओं के अनुसार, सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य और संतान के लिए रखा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, राजा प्रियव्रत ने भी छठ व्रत रखा था। उन्हें कुष्ट रोग हो गया था।इस रोग से मुक्ति के लिए भगवान भास्कर ने भी छठ व्रत किया था।
छठ के समापन के साथ ही बिहार से वापस अपने काम वाली जगहों पर लोगों का लौटना भी शुरू हो गया है। राजधानी पटना के अलावा बिहार के लगभग सभी शहरों में घाटों पर व्रतियों और उनके परिजनों की भारी भीड़ उमड़ी हुई थी। कई शहरों और देहातों में लोगों ने घरों की छतों पर भी छठ पूजा को अंजाम दिया। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में व्रती कठोर उपवास रखते हैं। सूर्य देव की आराधना वाला यह महापर्व बिहार की सांस्कृतिक पहचान है। यह मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में काफी श्रद्धा से मनाया जाता है। घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालु भगवान सूर्य को सबसे पहले अर्घ्य देने के लिए होड़ में रहते हैं।