श्री जानकी जी का अनुग्रह सहज करुणा से परिपूर्ण है। गुण-दोष की समीक्षा किये बिना सभी को आश्रय देना ही उनका वैशिष्ट्य है। यह वक्तव्य लक्ष्मण किलाधीश जी महाराज ने छपरा हनुमान जयन्ती में दिया। सत्तावन वर्षों से आयोजित होने वाले इस महोत्सव में अयोध्या से पधारे आचार्य मिथलेशनन्दिनीशरण जी ने कहा कि श्री हनुमान जी महाराज सेवा और समर्पण के प्रतीक हैं। श्रीराम का सन्देश ले जाकर सीता जी को और सीता जी का पता लगाकर श्रीराम जी को श्री हनुमान जी ने संतुष्ट किया है।
प्रभु के सभी सेवकों में सर्वाधिक प्रिय पात्र के रूप में श्री हनुमान जी विख्यात हैं, उन्होने अपने सेवाबल से प्रभु को अपने अधीन कर लिया है। श्री किशोरी जी के महत्त्व पर बोलते हुये आचार्य जी ने कहा कि भगवान स्वयं श्री सीता जी के अधीन हैं। श्रीराम राज्य की महिमा गाने वाले नहीं जानते कि वास्तविक साम्राज्य किशोरी जू का है। इसका रहस्य रसिक सन्त जानते हैं इसलिए वे गाते हैं – “हमारे माई जनकलली के राज।
जिनके रस बस भये रघुनन्दन रसिकन के सरताज। “श्री जानकी का यह वैभव जीवों के रक्षार्थ है। अपनी विशाल करुणा से श्री जी विश्व प्रपंच में पड़े जीवों की रक्षा करती हैं। इसीलिए श्री गोस्वामी जी महाराज विनय पत्रिका में सीता जी को पुकारते हुये कहते हैं- “कबहुँक अम्ब अवसर पाइ। मेरियौ सुधि द्याइबी कछु करुन कथा चलाइ।” अपने त्रिदिवसीय प्रवचन में अयोध्या से पधारे संतों ने भक्ति उपासना और पवित्र आचरण के अनेक संदर्भ उद्घाटित किये।