जदयू की अंदरूनी राजनीति और गुटबाजी को कोई नीतीश सरीखा राजनीति का मैंड्रेक ही हैंडल कर सकता है। जिस तरह मशहूर कॉमिक्स इंद्रजाल का मैंड्रेक कैरेक्टर अपने जादुई हुनर और चालों से दुश्मनों को परास्त कर अपने किले की रक्षा करता है, कुछ उसी तरह नीतीश कुमार भी अपने जदयू के झगड़ों को संभाल रहे हैं। ऐसे में नीतीश के एक फैसले ने वह काम किया जिससे जदयू के दोनों गुट काफी कन्फ्यूज हो गए हैं। हम बात कर रहे हैं मंत्री अशोक चौधरी को हाल में जदयू का महासचिव बनाए जाने के निर्णय की। जदयू का एक गुट जहां इसे उनका डिमोशन बता रहा तो वहीं दूसरा गुट इसे उनका प्रमोशन करार दे रहा।
जदयू की अंदरूनी सियासत पर नीतीश की चोट
दरअसल नीतीश ने पार्टी में वह दांव चला जिससे जदयू के दोनों गुटों को समझ नहीं आ रहा कि वे जश्न मनाएं या मातम। जदयू के लोग अपने अपने हिसाब से इसकी समीक्षा में लगे हैं। जी हां, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बतौर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जो निर्णय किया है उससे दोनों गुटों में उत्साह है। जहां तक जदयू की अंदरुनी सियासत की बात है तो पार्टी में दो गुट जगजाहिर हैं। इसमें एक गुट ऐसा है जो समता पार्टी के काल से नीतीश कुमार के साथ चल रहा है। जबकि दूसरा गुट वह है जो अन्य दलों से आए ऐसे नेताओं से बना है जो जदयू में आए और नीतीश कुमार की किचन कैबिनेट में शामिल हो गए। सियासी गलियारों में पहला गुट जहां कोर ग्रुप वाला माना जाता है जबकि दूसरे गुट को लोग भूंजा पार्टी समूह के रूप में इंगित करते हैं।
रोयें या गायें, कंन्फ्यूजन में पार्टी के दोनों गुट
बहरहाल, जदयू की गुटबाजी तब—तब सतह पर दिखी, जब दोनों गुटों के किसी भी नेता से कोई थोड़ी सी भी चूक हुई। बात मंत्री अशोक चौधरी की करें तो उनके कई प्रकरण सामने आये हैं जिसे पार्टी के लिए विरोधी गुट ने हानिकारक करार दिया। चाहे अशोक चौधरी की ललन सिंह से तकरार का मामला हो या चिराग का करीबी बन बेटी शांभवी चौधरी के लिए समस्तीपुर से टिकट का जुगाड़ करना या फिर जहानाबाद का भूमिहार प्रकरण और अब ताजा कविता प्रकरण, इन सबके बाद जदयू में आया भूचाल सबके सामने है।
अशोक चौधरी पर दो फाड़ होने से बची पार्टी
हाल के कविता प्रकरण के बाद जदयू का एक गुट जो अशोक चौधरी को गुड बुक में नहीं रखता, वह तो मान के चल रहा था कि अशोक चौधरी का अब तो खेल खत्म। नीतीश कुमार को डायरेक्ट हिट कर अशोक चौधरी ने अपनी शामत बुला ली है। और अब बस नीतीश कुमार उनका सियासी इलाज कर ही देंगे। कहा तो यह भी गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कविता प्रकरण के बाद तुरंत अशोक चौधरी को अपने सरकारी आवास बुलाया और जबर्दस्त फटकार लगाई। तब उनके विरोधियों को लगा आज तो सफाया तय है।
नीतीश के फैसले को अपने पक्ष में बताने की होड़
लेकिन अशोक चौधरी तो सीएम हाउस से जिस अंदाज में प्रफ्फुलित होते हुए निकले और फोटो भी खिंचवाई तो मामला कुछ समझ में नहीं आया। इसके अगले ही दिन नीतीश कुमार ने अशोक चौधरी को लेकर एक नया फैसला भी ले लिया। इस फैसल के तहत अशोक चौधरी को राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेवारी दी गई। लेकिन इस फैसले के भी दो अर्थ निकाले जाने लगे। अशोक चौधरी और जदयू का एक गुट इसे उनका पार्टी में प्रमोशन करार दे रहा है। साफ है कि राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद अशोक चौधरी की मुस्कान अपने तमाम विरोधियों को परास्त करने के लिए काफी है। लोजपा सांसद और अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी ने भी सोशल मीडिया पर एक कविता के जरिए अपने पिता के विरोधियों को एक बड़ा संदेश दे डाला।
इस आधार पर मंत्री चौधरी का डिमोशन बता रहा विरोधी गुट
दूसरी तरफ जदयू का दूसरा खेमा पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने को अशोक चौधरी का डिमोशन बता रहा है। इस गुट का कहना है कि अशोक चौधरी अपने डिमोशन से खुश हैं तो कोई क्या कर सकता है? अशोक चौधरी तो कोई अकेले राष्ट्रीय महासचिव नहीं हैं? इनके पहले दो महासचिव बन चुके हैं। पहले मनीष वर्मा। फिर हाल ही में जेडीयू में आए श्याम रजक को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। वे तीसरे नंबर के राष्ट्रीय महासचिव हैं। दुनिया को पता है राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा के रहते कोई भी क्या अपने मन की कर पायेगा? विरोधी खेमा यह भी कह रहा कि राष्ट्रीय महासचिव रहने पर अशोक चौधरी का मंत्री पद जाना तय है। अब तक जेडीयू के इतिहास में कोई भी राष्ट्रीय महासचिव मंत्री नहीं रहा है। एक चर्चा तो यह है कि इन्हें झारखंड का प्रभारी बना कर बिहार की राजनीति से अलहदा न कर दिया जाए।
स्पष्ट है कि अशोक चौधरी को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर नीतीश ने वह कलाकारी दिखाई जिससे पार्टी के सारे क्षत्रप खुश भी हैं और नाखुश भी। जदयू के दोनों गुटों में से किसी भी गुट को यह समझ नहीं आ रहा कि वे रोयें या गायें। यानी सब काफी कन्फ्यूज हैं। यही तो नीतीश कुमार की सियासी महारथ है जिसमें वे एक झटके में सबको ऐसे दोराहे पर ला खड़ा कर देते हैं जहां गुटबाजी के लिए कोई जगह ही नहीं बचती।