पटना : स्वास्थ्य व कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि राजद व लालू परिवार एक बार फिर जातीय उन्माद की आंच पर राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए बेचैन हैं। चारा घोटाले के चार-चार मामले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद तथा बेनामी सम्पत्ति व रेलवे में नौकरी के बदले जमीन घोटाला मामले में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित उनके परिवार के आधा दर्जन लोग आज बेल पर हैं। इस परिवार के लिए आरक्षण, संविधान, लोकतंत्र पर संकट का जुमला तथा जातीय गणना आदि भ्रष्टाचार के मामले में कानूनी शिकंजे से बाहर आने का एक हथकंडा मात्र है।
लालू-राबड़ी शासन काल पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि यह स्याह सच नहीं है कि उनके कार्यकाल में जातीय नरसंहारों का अंतहीन सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था? क्या यह सच नहीं है कि आये दिन नरसंहारों से पूरा बिहार दहला-सहमा रहता था? क्या उस दौर में दलित, पिछड़े व अतिपिछड़े जहां गाजर-मूली की तरह काटे गए वहीं शोध-प्रतिशोध व घात-प्रतिघात में अगड़ी जातियों पर भी कहर नहीं टूटा?
उन्होंने कहा कि क्या लालू-राबड़ी के शासनकाल की तल्ख सच्चाई कोसी क्षेत्र में जाति आधारित गैंगवार (1990-91), बारा नरसंहार (1992), इचरी नरसंहार(1993), छोटन शुक्ला-बृजबिहारी गैंगवार (1994), नाधी नरसंहार (1996), बथानी टोला नरसंहार (1996), लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार (1996), रामपुर चौरम नरसंहार(1998), उसरी बाजार नरसंहार (1999), भीमपुरा नरसंहार(1999), सेनारी नरसंहार (1999), शंकरबीघा नरसंहार (1999), अफसढ़ नरसंहार (2000), लखीसराय नरसंहार (2000),मियांपुर नरसंहार (2000) आदि नहीं है?
उन्होंने कहा कि बथानी टोला (22 दलितों की हत्या), लक्ष्मणपुर बाथे (58 दलितों/ पिछड़ों की हत्या), शंकरबिगहा (22 दलितों की हत्या) तथा मियांपुर नरसंहार (35 दलितों की हत्या) लालू-राबड़ी शासन पर एक काला धब्बा नहीं है? लालू व तेजस्वी बताएं कि क्या बिहार की जनता इन नृशंस नरसंहारों के लिए उन्हें कभी माफ करेगी?