बाढ़ : देवशयनी एकादशी की महत्ता धर्म शास्त्रों में काफी विस्तार से बताई गई है।देवशयनी एकादशी के दिन से ही सभी देवी – देवता शयन में चले जाते हैं और शुभ कार्य करना वर्जित हो जाता है और देवशयनी एकादशी तिथि से चतुर्यमास आरंभ हो जाता है।देवशयनी एकादशी को पितर दोष के बंधन से मुक्त होने के लिये लोग हवनादि यज्ञ कार्य किया करते हैं।देवशयनी एकादशी की कथा इस प्रकार से है। एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से आषाढ़ शुक्ल एकादशी की व्रत और विधि तथा महत्व के बारे में बताने का अनुरोध किया,तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इस व्रत को देवशयनी एकादशी के नाम से जानते हैं।
यह व्रत जीवों के उद्धार के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और जो इस व्रत को नहीं करता है,उसे नरक में स्थान मिलता है। ब्रह्म देव ने नारद जी से इस व्रत के महत्व और विधि को बताया था,वह तुमसे कहता हूं।इसकी कथा कुछ इस प्रकार से है- कथा के अनुसार एक समय में एक महान राजा मांधाता थे,जो बहुत की दयालु,धार्मिक, प्रतापी और सत्यवादी थे,वे अपनी प्रजा की संतान की तरह सेवा करते थे।उनके सुख और दुख का ध्यान रखते थे, उनके राज्य में सभी खुशहाल थे।एक बार ऐसा समय आया कि लगातार तीन साल तक बारिश नहीं हुई,जिसके कारण फसलें बर्बाद हो गईं और अकाल पड़ गई तथा उनकी प्रजा त्राहि-त्राहि करने लगी।
एक दिन प्रजा ने राजा से गुहार लगाई कि आप इस स्थिति से बाहर आने का कोई उपाय करें।राजा मांधाता भी परेशान हो गए,उनको यह देखा नहीं गया और वे सेना के साथ जंगल की ओर चले गए, वे काफी दिनों तक यात्रा करते रहे और तब जाकर वे ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम के पास पहुंचे और वे आश्रम के अंदर गए और अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया तब अंगिरा ऋषि ने उनसे आने का कारण पूछा? राजा मांधाता ने अंगिरा ऋषि से कहा कि अकाल के कारण उनकी प्रजा परेशान है, अन्न का संकट उत्पन्न हो गया है और चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है तथा बारिश न होने से यह स्थिति पैदा हो गई है।
इस संकट से निबटने का कोई मार्ग बताएं। इस पर अंगिरा ऋषि ने कहा कि आपको आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत विधि-विधान से करना चाहिए, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा करनी है।अंगिरा ऋषि ने कहा कि इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होंगे और आपकी मनोकामना को पूरा करेंगे एवं आपके अर्जित पुण्य से राज्य में बारिश होगी और अन्न का संकट दूर होगा फिर प्रजा फिर से खुशहाल हो जाएगी तथा जो भी इस व्रत को करता है।
उसके संकट दूर होते हैं और उसे सिद्धियों की प्राप्ति होती है।अंगिरा ऋषि को प्रणाम करके राजा मांधाता अपनी राजधानी वापस आ गए।जब आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि आई तो उन्होंने पूरी प्रजा के साथ इस व्रत को विधिपूर्वक किया। विष्णु पूजा की और दान आदि करने के साथ ही नियमपूर्वक पारण किया।इस व्रत को करने के कुछ समय बाद उनके राज्य में बारिश हुई,जिससे फसलों की पैदवार भी अच्छी हुई,उनका राज्य फिर से धन और धान्य वाला हो गया।उनकी प्रजा के दुखों का अंत हो गया।
सत्यनारायण चतुर्वेदी की रिपोर्ट