नवादा : वर्षा फाउंडेशन द्वारा, आयोजित 10 दिवसीय अभिनय कार्यशाला के अंत में, बच्चों ने जाना सिनेमा का इतिहास, सिनेमा का कारोबार, सिनेमा हॉल का इतिहास। सिनेमा की मार्केटिंग, और पहले से अब तक बदलता हुआ सिनेमा पर सिनेमा हॉल।
शुरुआत के दिनों में ब्लैक एंड वाइट फ़िल्म, फिर बोलती हुई फिल्म, और बाद में बोलती हुई रंगीन फिल्म। जैसे-जैसे सिनेमा बदला वैसे वैसे, सिनेमा हॉल और फिर चलाने के तरीके बदले। शहर के विजय सिनेमा हॉल के मालिक संतोष भट्ट ने बच्चों को सिनेमा हाल के बारे में बताया और शुरुआत से अब तक बदलते हुए सिनेमा और सिनेमा हॉल, और सिनेमा हॉल में, सिनेमा चलाने की विधि को विस्तार से बताया।
बहुत पहले शुरुआत के दिनों में 16mm, फिर 35mm पर सिनेमा चला, फिर 70mm पर सिनेमा चला जिसमें गोलाकार बड़ी सी रील होती थी। एक फिल्म के लिए, कम से कम 7 रील की जरुरत पड़ती थी, जिसमें दो रील सेटर की जरुरत पड़ती थी, जिसके लिए हमेशा दो आदमी उसे ऑपरेट करने में रहते थे। एक रील में 20 मिनट का सिनेमा होता था। पर 2015 के बाद सेटेलाइट सिस्टम आ गया। जिसमें प्रोजेक्टर से पर्दे पर सिनेमा हाल में सिनेमा चलने लगी।
आज सिनेमा तकनीक उन्नत हो चुकी है, और सिनेमा हॉल भी जिससे, भारी भरकम, रील की जरूर समाप्त हो गई। नवादा में सिनेमा हाल के इतिहास कि बात करें तो, पहला सिनेमा हॉल विजय सिनेमा हॉल जिसका शुभारंभ 23/12/1966 को गया के जिला कलेक्टर श्री खुर्शीद मुस्तफा जुंबेरी के द्वारा किया गया था। इस हाल में पहली फिल्म लगी थी। गोपाल कृष्ण, और उन दिनों सिनेमा हॉल का टिकट हुआ करता था। 6 अना 9 आना में।
सरस्वती सिनेमा हॉल पहले आरएम डबल्यू कॉलेज के कैंपस में हुआ करता था। निभा सिनेमा हॉल की शुरुआत 1995 में, राम जाने फिल्म से हुआ था। नटराज सिनेमा हाल की शुरुआत 15 अगस्त 1989 में हुआ था। सीमा टॉकीज सिनेमा हॉल कुछ दिनों चलकर बंद हो गया था। सिनेमा को लेकर ढेर सारी जानकारी उन्होंने बच्चों को दिया और फिर बच्चों ने सिनेमा हॉल में जाकर सिनेमा देखा, फिल्म कलकी, फिल्म देखने के बाद, भारत के अंदर सिनेमा हॉल के बनावट को लेकर भी, बातचीत हुई।
प्रशिक्षक के रूप में फिल्म अभिनेता सागर इंडिया ने सिनेमा देखने को लेकर बच्चों को विस्तार से बताया। सिनेमा के शुरुआत सिनेमा के अंत में लिखे गए हर एक लाइन अभिनेता के लिए जरुरी होता है। जिससे यह पता चलता है की डायरेक्टर कौन है, एक्टर कौन कौन है, राइटर कौन है, म्यूजिक किसने दिया, जिससे फिल्म के पूरे यूनिट का पता चलता है।
उन्होंने कहा कि सिनेमा देखने के समय म्यूजिक, डायलॉग, कैमरा वर्क, लोकेशन, साउंड इफ़ेक्ट, सीन, शॉर्ट इत्यादि को बारीक से देखना और समझना पड़ता है जिससे, एक नए अभिनेता को, यह समझ आता है कि जब वह खुद सिनेमा में काम करेगा तो पर्दे पर कैसा दिखेगा। इसमें प्रशिक्षण ले रहे बच्चे राजलक्ष्मी, रिया चंद्रवंशी, कौसतूब पांडे, आदित्य आर्यन आदि मौजूद रहे। कार्यशाला संयोजिका अनुराधा पंडित ने बताया, जिला में कलात्मक, और सिनेमा एवं रंगमंच का माहौल बनाना, हमारे संस्था की पहली प्राथमिकता है।
भईया जी की रिपोर्ट